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पाकिस्तान का अफगानिस्तानी शरणार्थियों को अपना देश छोड़ने के लिए दिया एक महीने का समय

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इस्लामाबाद. पाकिस्तान की केयरटेकर सरकार का कहना है कि देश में अवैध तरीके से रह रहे अफगानिस्तान के नागरिक पाकिस्तान में फिदायीन हमले कर रहे हैं। इसलिए हमने इन्हें वापस भेजने का फैसला लिया है। इसके लिए अफगानी लोगों को एक महीने की डेडलाइन दी गई है। हालांकि, इस फैसले को अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने गलत बताया है।

दरअसल, पाकिस्तान में 17 लाख से ज्यादा अफगानिस्तान के नागरिक रहते हैं। इन्हें पाकिस्तान की सरकार ने वापस जाने के लिए 1 नवंबर तक का समय दिया है। कहा है कि अगर एक महीने में अफगानिस्तान नहीं लौटे तो उन्हें जबरदस्ती देश निकाला दे दिया जाएगा। इस पर अफगानिस्तान ने नाराजगी जाहिर की है।

पाक गृह मंत्री बोले- 24 में 14 हमले अफगानियों ने किए
पाकिस्तान के गृह मंत्री सरफराज बुगती ने आरोप लगते हुए कहा- देश में हुए अब तक 24 फिदायीन हमलों में से 14 हमले अफगानिस्तान के नागरिकों ने किए हैं। हालांकि, तालिबान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है। तालिबान का कहना है कि ये पाकिस्तान सरकार की सिक्योरिटी पॉलिसी में खामियां हैं। इसके लिए हमारे नागरिकों को जिम्मेदार ठहराना हमें गवारा नहीं है।

तालिबान बोले- दोबारा सोच ले पाकिस्तान सरकार
तालिबान के स्पोक्सपर्सन जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा- हमारे नागरिकों की तरफ पाकिस्तान सरकार का ये रुख ठीक नहीं है। नागरिकों को वापस भेजने वाले प्लान पर उन्हें दोबारा सोच लेना चाहिए। अगर हमारे नागरिक इच्छा से वापस आना चाहते हैं तो ठीक है लेकिन उनके साथ जबरदस्ती करना गलत है।

अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आने के बाद पाकिस्तान में आतंक बढ़ा
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में आंतकी संगठन TTP को मजबूती मिली है। आतंकवाद की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान में अब तक जितने भी आतंकी संगठन हैं, उनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सबसे खतरनाक माना जाता है। इसी संगठन ने मलाला यूसुफजई पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। इसी ने पेशावर में सैनिक स्कूल पर हमला करके 114 बच्चों को मार दिया था।

पाकिस्तानी तालिबान की जड़ें जमना उसी वक्त शुरू हो गई थीं, जब 2002 में अमेरिकी कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छुपे थे। इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की मुखालफत होने लगी। कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे।

ऐसे में दिसंबर 2007 को बेतुल्लाह महसूद की अगुआई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया। शॉर्ट में इसे TTP या फिर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है। यह अफगानिस्तान के तालिबान संगठन से अलग है, लेकिन इरादे करीब-करीब एक जैसे हैं। दोनों ही संगठन शरिया कानून लागू करना चाहते हैं।

साभार : दैनिक भास्कर

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