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मालदीव और बांग्लादेश के लोक सेवकों के लिए आयोजित कार्यक्रम का समापन

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नई दिल्ली (मा.स.स.). राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र ने नई दिल्ली में मालदीव और बांग्लादेश के सिविल सेवकों के तीन बैचों के लिए 2-सप्ताह के क्षमता निर्माण कार्यक्रम का समापन किया। राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र (एनसीजीजी), भारत और अन्य विकासशील देशों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के सिविल सेवकों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रतिपादित ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के अनुरूप, एनसीजीजी के क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का उद्देश्य नागरिक-केंद्रित नीतियों, सुशासन, उन्नत सेवा वितरण को बढ़ावा देना और नागरिकों के लिए जीवन की समावेशिता को सुनिश्चित करते हुए अंततः गुणवत्ता में सुधार करना है।

नई दिल्ली में नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य), डॉ. वी.के.पॉल ने मुख्य अतिथि के रूप में समापन सत्र में अपना प्रेरक समापन संबोधन दिया। उन्होंने बांग्लादेश, मालदीव और भारत के बीच साझा इतिहास, संस्कृति और मूल्यों का उल्लेख करते हुए साझा सीमाओं तथा तटों के कारण उनकी परस्पर संबद्धता पर जोर दिया। डॉ. वी.के.पॉल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2047 के एक समृद्ध, समावेशी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के संदर्भ से जुड़े दृष्टिकोण पर बल दिया।

2047 के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के सिद्धांतों और उद्देश्यों को अपनाते हुए, उन्होंने सिविल सेवकों से समावेशी विकास, उच्च आर्थिक विकास, तकनीकी उन्नति, शहरीकरण के प्रबंधन, पर्यावरणीय स्थिरता और वैश्विक सहयोग की दिशा में अपने-अपने देशों की जरूरतों के अनुसार मार्गों को निर्धारित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विजन@2047 दीर्घकालिक प्रगति हासिल करने के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है और राष्ट्रों को अपने नागरिकों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इन लक्ष्यों की दिशा में सक्रिय रूप से कार्य करके सिविल सेवक व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण में भी योगदान दे सकते हैं और सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।

उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के दर्शन को साझा किया, जिसे जी20 प्रारुप के तहत ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की अवधारणा के रूप में विकसित किया गया है। उन्होंने कहा कि समावेशी विकास के लिए गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच जैसी सामान्य वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांतों को अपनाकर देश इन चुनौतियों का अभिनव और स्थायी समाधान खोजने के लिए अपने प्रयासों, संसाधनों और विशेषज्ञता को साझा कर सकते हैं। यह सहयोगी दृष्टिकोण सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों को साझा करने, ज्ञान के आदान-प्रदान और सामूहिक समस्या-समाधान प्रदान करते हुए अंततः अधिक प्रभावी और समावेशी विकास परिणामों का मार्ग प्रशस्त करता है।

उन्होंने महात्मा गांधी का एक सशक्त उद्धरण को भी साझा किया, जो सिविल सेवकों के लिए एक मूल मंत्र के रूप में कार्य करता है। जिसमें उन्होंने कहा- ‘’मैं एक मूल मंत्र दूंगा। जब भी आप संदेह में हों, या जब स्वयं अत्यधिक आत्मविश्वास से भरे हों, तो निम्नलिखित परीक्षण करें। सबसे गरीब और सबसे कमजोर पुरुष [महिला] का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा हो, और अपने आप से पूछें कि आप जिस कार्य पर विचार कर रहे हैं, क्या वह उस पुरूष [महिला] लिए उपयोगी होगा। क्या इससे उसे कुछ हासिल होगा? क्या यह उसे पुरूष [महिला] अपने जीवन और नियति पर नियंत्रण करने के लिए पुनर्स्थापित करेगा? दूसरे शब्दों में, क्या यह भूखे और आध्यात्मिक रूप से भूखे लाखों लोगों को स्वराज [स्वतंत्रता] की ओर ले जाएगा।’’ डॉ. पॉल ने अपने प्रभावशाली समापन संबोधन के साथ सिविल सेवकों से सबसे कमजोर लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए करुणा और समर्पण के साथ कार्य करने का आग्रह किया क्योंकि वे सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने का प्रयास करते हैं।

एनसीजीजी के महानिदेशक भरत लाल ने अपने मुख्य संबोधन में लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और उन्हें अपनी पूरी क्षमता का अनुभव करने के लिए अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम बनाने में सिविल सेवकों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सिविल सेवकों को अपने कौशल और क्षमताओं का उपयोग करके सकारात्मक बदलाव लाने और जीवन को सरल बनाने के लिए समर्थक के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होंने जनता की सेवा करते हुए आंतरिक रूप से अपने संगठनों के भीतर और बाहरी रूप से उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सटीकता के साथ काम करके, पूर्णता को प्राप्त करने की दिशा में व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए सिविल सेवक समग्र विकास में योगदान दे सकते हैं।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, नागरिक-केंद्रित नीतियों का कार्यान्वयन जैसे सूखे के लिए अतिसंवेदनशील क्षेत्र में स्वच्छ नल का पानी उपलब्ध कराते हुए लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। उन्होंने कहा कि इसके लिए गुजरात का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसकी 1999-2000 में जीएसडीपी की विकास दर केवल 1.09% थी और 2000-2001 में माइनस (-) 4.89% थी, लेकिन अगले दो दशकों में इसने दो अंकों की वृद्धि हासिल की। उन्होंने कहा कि यह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रदान किए गए प्रेरक नेतृत्व, प्रगतिशील नीतियों और सिविल सेवकों के अथक प्रयासों के कारण हासिल किया जा सका। उन्होंने कहा कि लोगों की सेवा करने और इसे जीवन का उद्देश्य बनाने की अटूट प्रतिबद्धता समाज में परिवर्तन के लिए सहायक हो सकती है और ऐसे ही रास्तों पर चलकर उत्कृष्ट समाज का निर्माण किया जा सकता है।

जैसा कि हम इस सदी को ‘एशियाई सदी’ बनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं, हमें समग्र प्रगति और समावेशी विकास सुनिश्चित करने, जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, सभी के लिए समृद्धि लाने और गरीबी एवं अभाव को समाप्त करने की दिशा में कार्य करना होगा। यह सदी विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करने, विकासात्मक और जलवायु एजेंडे को आकार देने, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और मानवता की समग्र प्रगति एवं विकास में योगदान करने के लिए अद्वितीय अवसर प्रस्तुत कर रही है। उन्होंने आह्वान किया कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अपने-अपने देशों में समान प्रगति और विकास को साकार करने की दिशा में प्रयास करें और वैश्विक मामलों के भविष्य पथ को आकार दें। विदेश मंत्रालय (एमईए) के साथ साझेदारी में, एनसीजीजी ने विकासशील देशों के सिविल सेवकों की क्षमता का निर्माण करने का उत्तरदायित्व सँभाला है।

अभी तक मालदीव सिविल सेवा के 685 अधिकारियों और बांग्लादेश सिविल सेवा के 2100 अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इसने 15 देशों बांग्लादेश, केन्या, तंजानिया, ट्यूनीशिया, सेशेल्स, गाम्बिया, मालदीव, श्रीलंका, अफगानिस्तान, लाओस, वियतनाम, भूटान, म्यांमार, नेपाल और कंबोडिया के सिविल सेवकों को प्रशिक्षण भी दिया है। विभिन्न देशों के भाग लेने वाले अधिकारियों द्वारा इन प्रशिक्षणों को अत्यधिक उपयोगी माना गया। साथ ही, एनसीजीजी देश के विभिन्न राज्यों के सिविल सेवकों के क्षमता निर्माण में शामिल रहा है। इन कार्यक्रमों के आयोजन की अत्यधिक अपेक्षा को देखते हुए विदेश मंत्रालय के समर्थन से, एनसीजीजी अधिक देशों से अधिक संख्या में सिविल सेवकों को समायोजित करने के लिए अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है। एनसीजीजी ने इन अत्यधिक मांग वाले कार्यक्रमों में 2021-22 में 236 अधिकारियों से लेकर 2023-24 में 2,200 से अधिक अधिकारियों को प्रशिक्षण देते हुए इसमें 7 गुना वृद्धि दर्ज की है।

इस कार्यक्रम में, एनसीजीजी ने देश में की गई विभिन्न पहलों जैसे कि शासन के बदलते प्रतिमान, गंगा के विशेष संदर्भ में नदियों का कायाकल्प, डिजिटल तकनीक का लाभ उठाना: बुनियादी ढांचे के विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, भारत में भूमि प्रशासन, भारत का संवैधानिक आधार, भारत में नीति निर्माण और विकेंद्रीकरण, सार्वजनिक अनुबंध और नीतियां, सार्वजनिक नीति और कार्यान्वयन, चुनाव प्रबंधन, आधार: सुशासन का एक उपकरण, डिजिटल शासन: पासपोर्ट सेवा और मदद, ई-गवर्नेंस और डिजिटल इंडिया उमंग के साथ आपदा प्रबंधन के मामलों का अध्ययन, तटीय क्षेत्र के लिए विशेष संदर्भ, प्रशासन में नैतिकता, परियोजना योजना, निष्पादन और निगरानी- जल जीवन मिशन, स्वामित्व योजना: ग्रामीण भारत के लिए संपत्ति सत्यापन, सतर्कता प्रशासन, भ्रष्टाचार विरोधी रणनीतियाँ आदि को साझा किया।

कार्यक्रम के दौरान, प्रतिभागियों को प्रशासन को देखने के लिए भारत की संसद, प्रधानमंत्री संग्रहालय और कुछ शहरों की यात्रा पर भी ले जाया गया। पाठ्यक्रमों का संचालन डॉ. ए.पी. सिंह, पाठ्यक्रम समन्वयक (बांग्लादेश) और डॉ. बी.एस. बिष्ट, पाठ्यक्रम समन्वयक (मालदीव) के साथ-साथ सह-पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. संजीव शर्मा द्वारा किया गया। एनसीजीजी की पूरी सीबीपी टीम ने कार्यक्रमों के सुचारू निष्पादन को सुनिश्चित किया।

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