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जेल: एक अनकही यूनिवर्सिटी में बुलंद होते नामी क्रिमिनल्स के हौंसले

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– अतुल मलिकराम

जेल एक अनोखी यूनिवर्सिटी है। जेल एक कैदी को इतना सिखा देती है कि हम और आप उस बारे में सोच भी नहीं सकते। अगर यूँ कहा जाए कि जेल, जिंदगी की भूख बढ़ा देती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। आप हर एक चीज़ के लिए भूखे होते हैं। आईपीएस दिनेश एमएन, जिन्होंने सात साल जेल में बिताए, अपने अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं कि एक अपराधी जो भी काम करता है, वह गैर-कानूनी है और मानवता के लिए गलत है। यह संविधान के हिसाब से भी गलत है और समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता है। उनके मोहल्ले वाले भी उन्हें नहीं स्वीकारते हैं और कई बार घर वाले भी मुँह फेर लेते हैं। भले आपका गुनाह कैसा भी हो, किसी भी प्रकार से सामाजिक दृष्टि से उसकी कोई सफाई या माफी नहीं होती है।

लेकिन इसके बावजूद, एक नामी रसूखदार कैदी खुद में इतना मजबूत कैसे महसूस करता है? आखिर उसकी ताकत क्या होती है? ऐसा क्या होता है, जो उसे विपरीत परिस्थितियों में भी खड़ा रखता है? इसके जवाब में उन्हें एहसास होता है कि इन सब के पीछे एक कैदी का सबसे बड़ा आत्मविश्वास यह होता है कि भले उसने 50 मर्डर कर दिए हों, लेकिन उसे सज़ा नहीं होगी। अब सवाल यह है कि यदि पहले मर्डर में ही उसे फाँसी या आजीवन कारावास हो जाए, तो फिर वह आगे मर्डर करेगा ही क्यों और करेगा भी तो कैसे करेगा?

ऐसा खासकर उन बड़े और नामी क्रिमिनल्स के साथ होता है। उनके पास इतना पैसा आता है कि वे यह सोचते हैं कि पुलिस से लेकर कोर्ट तक वह सब को मैनेज कर सकते हैं। इनके जो गैंग मेंबर्स होते हैं, वे इनके इशारे पर किसी को भी गोली मार सकते हैं। उन्हें अपने गैंग मेंबर्स पर पूरा विश्वास होता है। उनका टैरर, खौफ या डर जो उन्होंने समाज में पैदा किया है। यह एक प्रकार से उनका इन्वेस्टमेंट होता है। एक मर्डरर के लिए उसका खौफ ही सब कुछ है, जो उसे कायम रखना पड़ता है। एक सबसे महत्वपूर्ण और जरुरी फैक्ट, उन्हें कोई न कोई राजनीतिक सपोर्ट जरूर मिलता है, जिस सपोर्ट के सहारे हर क्रिमिनल सीना चौड़ा कर खड़ा रहता है।

हालाँकि, एक अनकही यूनिवर्सिटी के रूप में देखें, तो जेल के अंदर बिताए गए समय के दौरान, एक अपराधी कई चीजें सीखता है। वह जानता है कि समाज उसे कैसे देखता है और कैसे उससे निपटना है। जेल में बिताए गए साल, उसे बाहरी दुनिया के लिए तैयार करते हैं, जिससे वह और भी खतरनाक बन जाता है। उसे यह समझ में आता है कि वह कैसे अपने डर और खौफ का उपयोग करके अपनी सत्ता कायम रख सकता है और कैसे राजनीतिक समर्थन उसकी ताकत को और भी मजबूत बना सकता है।

जेल एक ऐसी यूनिवर्सिटी है, जो न केवल अपराधियों को उनके अपराध के लिए सज़ा देती है, बल्कि उन्हें और भी चतुर, चालाक और मजबूत भी बनाती है। समाज के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि इस यूनिवर्सिटी ज्ञान व सुधार का केंद्र कैसे बनाया जाए। बहुत-से कैदी जो जेल के अंदर के जीवन से अपने बाहर के जीवन के बहुत से गुण सीखते हैं और सही दिशा में खुद को आगे बढ़ाते हैं। वहीं, बहुत-से कैदी अपने अंदर मिलने वाली परिपक्वता को गलत दिशा में इस्तेमाल करते हैं। हमें इस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है कि कैसे हम इस चक्र को तोड़ सकते हैं और कैदियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ सकते हैं।

लेखक राजनीतिक रणनीतिकार हैं.

नोट : लेखक के विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

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