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ब्रिक्स समूह देशों के सम्मेलन में बढ़ा है भारत का कद

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– प्रहलाद सबनानी

हाल ही में ब्रिक्स समूह के देशों का सम्मेलन रूस के कजान शहर में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में रूस ने भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का गर्मजोशी से स्वागत तो किया ही, साथ ही, चीन के राष्ट्रपति के साथ भी भारत के प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता सम्पन्न हुई। इस वार्ता में चीन ने भारत की सीमा के पास जमा कर रक्खे अपने सैनिकों को पीछे हटाकर, सीमा पर वर्ष 2020 की स्थिति बहाल करने की घोषणा की है। भारत को भी अपने सैनिकों को सीमा पर पीछे की ओर ले जाना होगा। इससे भारत एवं चीन की सीमा पर पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रहे तनाव को कम करने में सफलता हासिल होगी। इस संदर्भ में विभिन्न समाचार पत्रों में छपी जानकारी के अनुसार चीन एवं भारत ने अपने 80 से 90 प्रतिशत सैनिकों को वापिस पीछे की ओर हटा लिया है। चीन और भारत के आपस में सम्बंध सुधरने का असर केवल इन दोनों देशों के आपसी तनाव को ही कम नहीं करेगा बल्कि इन सम्बन्धों में सुधार का असर आर्थिक क्षेत्र में भी देखने को मिलेगा।

दरअसल चीन आज आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है, चीन में आर्थिक विकास की दर तिमाही दर तिमाही कम हो रही है। चीन के अमेरिका के साथ सम्बंध बहुत अच्छे नहीं रहे है। अमेरिका एवं कई यूरोपीयन देशों ने चीन से विभिन्न वस्तुओं के आयात पर करों को बढ़ा दिया है ताकि चीन से आयात को कम किया जा सके। चीन की आंतरिक अर्थव्यवस्था में भी उत्पादों की मांग लगातार कम हो रही हैं। साथ ही, चीन के भवन निर्माण क्षेत्र एवं बैकिंग क्षेत्र में भी कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो गई हैं। चीन के अपने पड़ौसी देशों, ताईवान, फिलिपींस, जापान, भारत आदि  के साथ भी सम्बंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस सबका असर यह रहा है कि चीन ने भारत के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारने की पहल शुरू की है ताकि वह भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ा सके एवं अपनी आर्थिक स्थिति को कुछ हद्द तक सुधार सके। हालांकि चीन के विस्तरवादी नीतियों पर चलने के कारण चीन पर तुरंत विश्वास करना बहुत कठिन है। इस संदर्भ में चीन का इतिहास भी इस बात का साक्षी नहीं रहा है कि चीन के सम्बंध किसी भी देश के साथ स्थायी रूप से बहुत अच्छे रहे हों।

ब्रिक्स देशों में विश्व की 45 प्रतिशत आबादी निवास करती है, पूरे विश्व की 33 प्रतिशत भूमि इन देशों के पास है एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था में 28 प्रतिशत हिस्सेदारी ब्रिक्स के सदस्य देशों की है। ब्रिक्स समूह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह गैर पश्चिमी देशों का एक समूह जरूर है, परंतु वह पश्चिमी देशों के विरुद्ध नहीं है। ब्रिक्स समूह को स्थापित करने वाले देशों में ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन (BRIC) थे एवं वर्ष 2009 में दक्षिणी अफ्रीका को भी इस समूह में शामिल कर इस BRICS का नाम दिया गया। आगे चलकर मिश्र (ईजिप्ट), ईथीयोपिया, ईरान, सऊदी अरब एवं यूनाइटेड अरब अमीरात को भी ब्रिक्स समूह में शामिल कर इस समूह का विस्तार किया गया। आज विश्व के कई अन्य देश भी ब्रिक्स समूह के सदस्य बनकर ग्लोबल साउथ की आवाज बनना चाहते हैं। हाल ही में रूस के कजान शहर में सम्पन्न ब्रिक्स समूह के सम्मेलन में स्थायी, अस्थाई एवं आमंत्रित 36 देशों ने भाग लिया। ब्रिक्स के इस सम्मेलन में इस विषय पर भी विचार किया गया कि ब्रिक्स देशों के पास एक अपना पेमेंट सिस्टम होना चाहिए एवं वैश्विक स्तर पर हो रहे व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहिए।

पश्चिमी देश वर्तमान में पूरे विश्व में लागू स्विफ्ट सिस्टम का दुरुपयोग कर रहे हैं एवं इसके माध्यम से अन्य देशों पर अपनी चौधराहट स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। स्विफ्ट सिस्टम के माध्यम से पूरे विश्व के देशों के बीच धन सम्बंधी व्यवहारों को सम्पन्न किया जाता है। यदि किसी देश को इसकी सदस्यता से हटा लिया जाता है तो वह देश विश्व के अन्य देशों के साथ आर्थिक (धन सम्बंधी) व्यवहार नहीं कर सकता है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने जब रूस पर सैंक्शन लगाए थे तब रूस को स्विफ्ट सिस्टम से हटा दिया गया था जिससे रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने व्यापार के लेनदेनों का निपटान करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इस संदर्भ में, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में लागू यूनिफाईड पेयमेंट सिस्टम (यूपीएस), जिसे भारत में ही विकसित किया गया है, को भी ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों में लागू करने पर विचार करने हेतु समस्त सदस्य देशों से आग्रह किया है। अभी तक भारत के यूनीफाईड पेयमेंट सिस्टम को 7 देशों ने अपना लिया है एवं 30 से अधिक देश इसे अपनाने के लिए विचार कर रहे हैं। भारत में यह सिस्टम बहुत ही सफलता पूर्वक कार्य कर रहा है। दूसरे, पूरे विश्व में डॉलर के प्रभाव को कम करने हेतु भी ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच चर्चा हुई है। डॉलर के स्थान पर ब्रिक्स करेन्सी को अपनाने अथवा ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों की बीच हो रहे व्यापार सम्बंधी व्यवहारों के निपटान हेतु ये देश आपस में अपनी करेन्सी के उपयोग पर जोर देने पर भी सहमत होते दिखे हैं।

ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ही भारत एवं चीन के बीच हाल ही में सम्पन्न हुए बॉर्डर समझौते के बावजूद भारत को चीन से भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर अपनी गहरी नजर बनाए रखना चाहिए। भविष्य में भी भारत को चीन से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति सोच समझकर ही देना चाहिए। क्योंकि, चीन के इतिहास को देखते हुए उस पर आज भी विश्वास नहीं किया जा सकता है। भारत ने हालांकि वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को निर्धारित किया है। चीन के साथ भारत के सम्बंध सुधरने के पश्चात इस लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी हो सकती है। परंतु, यह कार्य फिर भी बहुत सोच समझकर ही करना होगा। चीन के साथ भारत का विदेशी व्यापार अत्यधिक मात्रा में ऋणात्मक ही है। भारत ने केलेंडर वर्ष 2023 में चीन से 12,100  करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि के उत्पादों का आयात किया था, परंतु भारत से चीन को निर्यात बहुत ही कम मात्रा में हो रहे हैं तथा चीन द्वारा भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बहुत कम मात्रा में ही किए जा रहे हैं। चीन, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देशों की सूची में 22वें स्थान पर है और भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में चीन की हिस्सेदारी केवल 0.37 प्रतिशत की ही है। यह सही है कि चीन के साथ बॉर्डर समझौते के बाद चीन से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ सकता है परंतु भारत को चीन के इतिहास को देखते हुए अभी भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच आज भारत का कद तो बढ़ ही रहा है, साथ ही, आज विश्व के कई देशों द्वारा यूरोप एवं अमेरिका के प्रभाव से बाहर निकलने के प्रयास भी लगातार किए जा रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति ने ब्रिक्स समूह की बैठक में बताया है कि विश्व के कई देश आज ब्रिक्स समूह की सदस्यता ग्रहण करना चाहते हैं। इस प्रकार, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ्रीका) एवं शंघाई समूह आदि संगठन बहुत तेजी से अपने प्रभाव को वैश्विक स्तर पर बढ़ा रहे हैं। दरअसल, आज अमेरिका सहित यूरोपीयन देशों (फ्रान्स, जर्मनी, ब्रिटेन आदि) की आर्थिक परिस्थितियां लगातार बिगड़ती जा रही हैं और इन देशों की आर्थिक प्रगति धीमे धीमे कम हो रही है और ये देश मंदी की चपेट में आने की ओर आगे बढ़ रहे हैं जबकि आर्थिक विकास की दृष्टि से यह सदी अब भारत की होने जा रही है। आने वाले समय में, वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वार्धिक वृद्धि में भारत का योगदान लगभग 16 प्रतिशत तक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अतः विश्व के कई शक्तिशाली देश आज भारत के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूती देना चाहते हैं, इसी के चलते ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच भी भारत का कद अब बढ़ता दिखाई दे रहा है।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं.

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