नई दिल्ली (मा.स.स.). लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला, राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश, सांसदगण, सभी वरिष्ठ जनप्रतिनिधि, विशिष्ट अतिथि, अन्य सभी महानुभाव, और मेरे प्यारे देशवासियों! हर देश की विकास यात्रा में कुछ पल ऐसे आते हैं, जो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। कुछ तारीखें, समय के ललाट पर इतिहास का अमिट हस्ताक्षर बन जाती हैं। आज 28 मई, 2023 का ये दिन, ऐसा ही शुभ अवसर है। देश आजादी के 75 वर्ष होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत महोत्सव में भारत के लोगों ने अपने लोकतंत्र को संसद के इस नए भवन का उपहार दिया है। आज सुबह ही, संसद भवन परिसर में, सर्वपंथ प्रार्थना हुई है। मैं सभी देशवासियों को भारतीय लोकतन्त्र के इस स्वर्णिम क्षण की बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
ये सिर्फ एक भवन नहीं है। ये 140 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब है। ये विश्व को भारत के दृढ संकल्प का संदेश देता हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। ये नया संसद भवन, योजना को यथार्थ से, नीति को निर्माण से, इच्छाशक्ति को क्रियाशक्ति से, संकल्प को सिद्धि से जोड़ने वाली अहम कड़ी साबित होगा। ये नया भवन, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करने का माध्यम बनेगा। ये नया भवन, आत्मनिर्भर भारत के सूर्योदय का साक्षी बनेगा। ये नया भवन, विकसित भारत के संकल्पों की सिद्धि होते हुए देखेगा। ये नया भवन, नूतन और पुरातन के सह-अस्तित्व का भी आदर्श है।
नए रास्तों पर चलकर ही नए प्रतिमान गढ़े जाते हैं। आज नया भारत, नए लक्ष्य तय कर रहा है, नए रास्ते गढ़ रहा है। नया जोश है, नई उमंग है। नया सफर है, नई सोच है। दिशा नई है, दृष्टि नई है। संकल्प नया है, विश्वास नया है। और आज फिर एक बार फिर पूरा विश्व, भारत को, भारत के संकल्प की दृढ़ता को, भारतवासियों की प्रखरता को, भारतीय जनशक्ति की जिजीविषा को, आदर और उम्मीद के भाव से देख रहा है। जब भारत आगे बढ़ता है तो विश्व आगे बढ़ता है। संसद का ये नया भवन, भारत के विकास से, विश्व के विकास का भी आह्वान करेगा।
आज इस ऐतिहासिक अवसर पर, कुछ देर पहले संसद की इस नई इमारत में पवित्र सेंगोल की भी स्थापना हुई है। महान चोल साम्राज्य में सेंगोल को, कर्तव्यपथ का, सेवापथ का, राष्ट्रपथ का प्रतीक माना जाता था। राजाजी और आदीनम् के संतों के मार्गदर्शन में यही सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। तमिलनाडु से विशेष तौर पर आए हुए आदीनम् के संत आज सुबह संसद भवन में हमें आशीर्वाद देने उपस्थित हुए थे। मैं उन्हें पुन: श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। उनके ही मार्गदर्शन में लोकसभा में ये पवित्र सेंगोल स्थापित हुआ है। पिछले दिनों मीडिया में इसके इतिहास से जुड़ी बहुत सारी जानकारी उजागर हुई है। मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता। लेकिन मैं मानता हूं, ये हमारा सौभाग्य है कि इस पवित्र सेंगोल को हम उसकी गरिमा लौटा सके हैं, उसकी मान-मर्यादा लौटा सके हैं। जब भी इस संसद भवन में कार्यवाही शुरू होगी, ये सेंगोल हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा।
भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र ही नहीं बल्कि लोकतन्त्र की जननी भी है, मदर ऑफ डेमोक्रेसी भी है। भारत आज वैश्विक लोकतन्त्र का भी बहुत बड़ा आधार है। लोकतन्त्र हमारे लिए सिर्फ एक व्यवस्था नहीं, एक संस्कार है, एक विचार है, एक परंपरा है। हमारे वेद हमें सभाओं और समितियों के लोकतान्त्रिक आदर्श सिखाते हैं। महाभारत जैसे ग्रन्थों में गणों और गणतंत्रों की व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। हमने वैशाली जैसे गणतंत्रों को जीकर दिखाया है। हमने भगवान बसवेश्वर के अनुभव मंटपा को अपना गौरव माना है। तमिलनाडु में मिला 900 ईस्वी का शिलालेख आज भी हर किसी को हैरान कर देता है। हमारा लोकतंत्र ही हमारी प्रेरणा है, हमारा संविधान ही हमारा संकल्प है। इस प्रेरणा, इस संकल्प की सबसे श्रेष्ठ प्रतिनिधि अगर कोई है तो ये हमारी संसद है।
और ये संसद देश की जिस समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, उसका उद्घोष करती है- शेते निपद्य-मानस्य चराति चरतो भगः चरैवेति, चरैवेति- चरैवेति॥ कहने का तात्पर्य जो रुक जाता है, उसका भाग्य भी रुक जाता है। लेकिन जो चलता रहता है, उसी का भाग्य आगे बढ़ता है, बुलंदियों को छूता है। और इसलिए, चलते रहो, चलते रहो। ग़ुलामी के बाद हमारे भारत ने बहुत कुछ खोकर अपनी नई यात्रा शुरू की थी। वो यात्रा कितने ही उतार-चढ़ावों से होते हुए, कितनी ही चुनौतियों को पार करते हुए, आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुकी है। आज़ादी का ये अमृतकाल- विरासत को सहेजते हुए विकास के नए आयाम गढ़ने का अमृतकाल है। आज़ादी का ये अमृतकाल- देश को नई दिशा देने का अमृतकाल है। आज़ादी का ये अमृतकाल- अनंत सपनों को, असंख्य आकांक्षाओं को पूरा करने का अमृतकाल है। इस अमृतकाल का आह्वान है-
मुक्त मातृभूमि को नवीन मान चाहिए।
नवीन पर्व के लिए, नवीन प्राण चाहिए।
मुक्त गीत हो रहा, नवीन राग चाहिए।
नवीन पर्व के लिए, नवीन प्राण चाहिए।
और इसलिए भारत के भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाली इस कार्यस्थली को भी उतना ही नवीन होना चाहिए, आधुनिक होना चाहिए।
एक समय था, जब भारत दुनिया के सबसे समृद्ध और वैभवशाली राष्ट्रों में गिना जाता था। भारत के नगरों से लेकर महलों तक, भारत के मंदिरों से लेकर मूर्तियों तक, भारत का वास्तु, भारत की विशेषज्ञता का उद्घोष करता था। सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन से लेकर मौर्यकालीन स्तंभों और स्तूपों तक, चोल शासकों के बनाए भव्य मंदिरों से लेकर जलाशयों और बड़े बांधों तक, भारत का कौशल, विश्व भर से आने वाले यात्रियों को हैरान कर देता था। लेकिन सैकड़ों साल की गुलामी ने हमसे हमारा ये गौरव छीन लिया। एक ऐसा भी समय आ गया जब हम दूसरे देशों में हुए निर्माण को देखकर मुग्ध होने लग गए। 21वीं सदी का नया भारत, बुलंद हौसले से भरा हुआ भारत, अब गुलामी की उस सोच को पीछे छोड़ रहा है। आज भारत, प्राचीन काल की उस गौरवशाली धारा को एक बार फिर अपनी तरफ मोड़ रहा है। और संसद की ये नई इमारत, इस प्रयास का जीवंत प्रतीक बनी है। आज नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरव से भरा हुआ है। इस भवन में विरासत भी है, वास्तु भी है। इसमें कला भी है, कौशल भी है। इसमें संस्कृति भी है, और संविधान के स्वर भी हैं।
आप देख रहे हैं कि लोकसभा का आंतरिक हिस्सा यहां भी देखिए, यहां भी देखिए, राष्ट्रीय पक्षी मोर पर आधारित है। राज्यसभा का आंतरिक हिस्सा राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित है। और संसद के प्रांगण में हमारा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद भी है। हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों की जो विविधता है, इस नए भवन ने उन सबको समाहित किया है। इसमें राजस्थान से लाए गए ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर लगाए गए हैं। ये जो लकड़ी का काम आप देख रहे हैं न, वो महाराष्ट्र से आई है। यूपी में भदोही के कारीगरों ने इसके लिए अपने हाथ से कालीनों को बुना है। एक तरह से, इस भवन के कण-कण में हमें ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना के दर्शन होंगे।
संसद के पुराने भवन में, सभी के लिए अपने कार्यों को पूरा करना कितना मुश्किल हो रहा था, ये हम सभी जानते हैं। टेक्नोलॉजी से जुड़ी समस्याएं थीं, बैठने की जगह से जुड़ी चुनौती थी। इसलिए ही बीते डेढ़ दो दशकों से ये चर्चा लगातार हो रही थी कि देश को एक नए संसद भवन की आवश्यकता है। और हमें ये भी देखना होगा कि आने वाले समय में सीटों की संख्या बढ़ेगी, सांसदों की संख्या बढ़ेगी, वो लोग कहां बैठते ? और इसलिए ये समय की मांग थी कि संसद की नई इमारत का निर्माण किया जाए। और मुझे खुशी है कि ये भव्य इमारत आधुनिक सुविधाओं से पूरी तरह लैस है। आप देख रहे हैं कि इस समय भी इस हॉल में सूरज का प्रकाश सीधे आ रहा है। बिजली कम से कम खर्च हो, हर तरफ लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वाले गैजेट्स हों, इन सभी का इसमें पूरा ध्यान रखा गया है।
आज सुबह ही मैं इस संसद भवन को बनाने वाले श्रमिकों के एक समूह से मिला हूं। इस संसद भवन ने करीब 60 हजार श्रमिकों को रोजगार देने का भी काम किया है। उन्होंने इस नई इमारत के लिए अपना पसीना बहाया है। मुझे खुशी है कि इनके श्रम को समर्पित एक डिजिटल गैलरी भी संसद में बनाई गई है। और विश्व में शायद ये पहली बार हुआ होगा। संसद के निर्माण में अब उनका योगदान भी अमर हो गया है।कोई भी एक्सपर्ट अगर पिछले नौ वर्षों का आकलन करे तो ये पाएगा कि ये नौ साल, भारत में नव निर्माण के रहे हैं, गरीब कल्याण के रहे हैं। आज हमें संसद की नई इमारत के निर्माण का गर्व है, तो मुझे पिछले 9 साल में गरीबों के 4 करोड़ घर बनने का भी संतोष है।
आज जब हम इस भव्य इमारत को देखकर अपना सिर ऊंचा कर रहे हैं, तो मुझे पिछले 9 साल में बने 11 करोड़ शौचालयों का भी संतोष है, जिन्होंने महिलाओं की गरिमा की रक्षा की, उनका सिर ऊंचा कर दिया। आज जब हम इस संसद भवन में सुविधाओं की बात कर रहे हैं, तो मुझे संतोष है कि पिछले 9 साल में हमने गांवों को जोड़ने के लिए 4 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा सड़कों का निर्माण किया। आज जब हम इस इको-फ्रेंडली इमारत को देखकर खुश हैं, तो मुझे संतोष है कि हमने पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए 50 हजार से ज्यादा अमृत सरोवरों का निर्माण किया है। आज जब हम इस नए संसद भवन की लोकसभा और राज्यसभा को देखकर उत्सव मना रहे हैं तो मुझे संतोष है कि हमने देश में 30 हजार से ज्यादा नए पंचायत भवन भी बनाए हैं। यानि, पंचायत भवन से लेकर संसद भवन तक, हमारी निष्ठा एक ही है, हमारी प्रेरणा एक रही- देश का विकास, देश के लोगों का विकास।
आपको ध्यान होगा, 15 अगस्त को लाल किले से मैंने कहा था- यही समय है, सही समय है। हर देश के इतिहास में ऐसा समय आता है, जब देश की चेतना नए सिरे से जागृत होती है। भारत में आजादी के 25 साल पहले, 47 के पहले 25 साल याद कीजिए, आजादी के 25 साल पहले, ऐसा ही समय आया था। गांधी जी के असहयोग आंदोलन ने पूरे देश को एक विश्वास से भर दिया था। गांधी जी ने स्वराज के संकल्प से हर भारतवासी को जोड़ दिया था। ये वो दौर था जब हर भारतीय, आजादी के लिए जी जान से जुट गया था। इसका नतीजा हमने 1947 में भारत की आजादी के तौर पर देखा। आज़ादी का ये अमृतकाल भी भारत के इतिहास का ऐसा ही पड़ाव है। आज से 25 साल बाद, भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा। हमारे पास भी 25 वर्ष का अमृत कालखंड है।
इन 25 वर्षों में हमें मिलकर भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है। लक्ष्य बड़ा है, लक्ष्य कठिन भी है, लेकिन हर देशवासी को आज इसके लिए जी- जान से जुटना ही है, नए प्रण लेने हैं, संकल्प लेने हैं, नई गति पकडनी है। और इतिहास गवाह है कि हम भारतीयों का विश्वास, सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रहता। हमारी आज़ादी की लड़ाई ने दुनिया के बहुत सारे देशों में उस समय एक नई चेतना जागृत कर दी थी। हमारी आज़ादी की लड़ाई से भारत तो आज़ाद हुआ ही साथ ही कई देश आज़ादी की राह पर चल पड़े। भारत के विश्वास ने, दूसरे देशों के विश्वास को सहारा दिया था। और इसलिए, भारत जैसा विविधता से भरा देश, इतनी बड़ी आबादी वाला देश, इतनी सारी चुनौतियों से लड़ने वाला देश, जब एक विश्वास के साथ आगे बढ़ता है, तो इससे दुनिया के अनेक देशों को प्रेरणा भी मिलती है। भारत की हर सफलता, आने वाले दिनों में दुनिया के अलग-अलग भूभाग में, अलग-अलग देशों की सफलता के रूप में प्रेरणा का कारण बनने वाली है। आज यदि भारत तेज़ी से ग़रीबी दूर करता है तो ये कई देशों को ग़रीबी से बाहर आने की प्रेरणा भी देता है। भारत का विकसित होने का संकल्प कई और देशों का संबल बनेगा। इसलिए भारत की ज़िम्मेदारी और बड़ी हो जाती है।
सफलता की पहली शर्त, सफल होने का विश्वास ही होती है। ये नया संसद भवन, इस विश्वास को नई बुलंदी देने वाला है। ये विकसित भारत के निर्माण में हम सभी के लिए नई प्रेरणा बनेगा। ये संसद भवन हर भारतीय के कर्तव्य भाव को जागृत करेगा। मुझे विश्वास है, इस संसद में जो जनप्रतिनिधि बैठेंगे, वे नई प्रेरणा के साथ, लोकतंत्र को नई दिशा देने का प्रयास करेंगे। हमें Nation First की भावना से आगे बढ़ना होगा- इदं राष्ट्राय इदं न मम हमें कर्तव्यपथ को सर्वोपरि रखना होगा- कर्तव्यमेव कर्तव्यं, अकर्तव्यं न कर्तव्यं हमें अपने व्यवहार से उदाहरण प्रस्तुत करना होगा- यद्यदा-चरति श्रेष्ठः तत्तदेव इतरो जनः। हमें निरंतर खुद में सुधार करते रहना होगा- उद्धरेत् आत्मना आत्मानम्। हमें अपने नए रास्ते खुद बनाने होंगे- अप्प दीपो भव: हमें खुद को खपाना होगा, तपाना होगा- तपसों हि परम नास्ति, तपसा विन्दते महत। हमें लोक कल्याण को ही अपना जीवन मंत्र बनाना होगा- लोकहितं मम करणीयम्, जब संसद के इस नए भवन में हम अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करेंगे, तो देशवासियों को भी नई प्रेरणा मिलेगी।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को यह नई संसद एक नई ऊर्जा और नई मजबूती प्रदान करेगी। हमारे श्रमिकों ने अपने पसीने से इस संसद भवन को इतना भव्य बना दिया है। अब हम सभी सांसदों का दायित्व है कि इसे अपने समर्पण से और ज्यादा दिव्य बनाएंगे। एक राष्ट्र के रूप में हम सभी 140 करोड़ भारतीयों का संकल्प ही, इस नई संसद की प्राण-प्रतिष्ठा है। यहां होने वाला हर निर्णय, आने वाली सदियों को सजाने-संवारने वाला है। यहां होने वाला हर निर्णय, आने वाली पीढ़ियों को सशक्त करने वाला होगा। यहां होने वाला हर निर्णय, भारत के उज्ज्वल भविष्य का आधार बनेगा। गरीब, दलित, पिछड़ा, आदिवासी, दिव्यांग, समाज के हर वंचित परिवार के सशक्तिकरण का, वंचितों को वरीयता का रास्ता यहीं से गुजरता है। इस नए संसद भवन की हर ईंट, हर दीवार, इसका कण-कण गरीब के कल्याण के लिए समर्पित है। अगले 25 वर्षों में संसद के इस नए भवन में बनने वाले नए कानून, भारत को विकसित भारत बनाएंगे। इस संसद में बनने वाले कानून भारत को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करेंगे। इस संसद में बनने वाले कानून, देश के युवाओं के लिए, महिलाओं के लिए नए अवसरों का निर्माण करेंगे। मुझे विश्वास है, संसद का यह नया भवन, नये भारत के सृजन का आधार बनेगा। एक समृद्ध सशक्त और विकसित भारत, नीति, न्याय, सत्य, मर्यादा और कर्तव्यपथ पर और सशक्त होकर चलने वाला भारत।
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं
https://www.amazon.in/dp/9392581181/