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मतदान के लिए संघर्ष से अधिक है वोट जिहाद का मतलब

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लव जिहाद और लैंड जिहाद के बाद हाल ही के दिनों में ‘वोट जिहाद’ शब्द चर्चा में है. अबकी बार इस शब्द का प्रयोग किसी हिन्दू ने नहीं बल्कि एक मुस्लिम नेत्री ने किया है. इसका सीधा अर्थ यह है कि उनकी योजना अब वोट जिहाद की है.

मामला उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले का है. यहाँ के कायमगंज के एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में इंडी गठबंधन के प्रत्याशी की चुनावी सभा में वोट जिहाद करने की अपील की गई. इस सभा के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद थे और वोट जिहाद की अपील करने वाली उनकी भतीजी मरिया आलम खां थीं. सभा में आये सभी लोगों ने तालियों के साथ वोट जिहाद की अपील का समर्थन भी किया.

जब विवाद अधिक बढ़ा तो खुर्शीद ने सफाई दी की जिहाद शब्द का गलत अर्थ लगा लिया जाता है, इसलिए इसका प्रयोग करने से बचना चाहिए. उन्होंने अपनी भतीजी का बचाव करते हुए कहा कि मरिया का अर्थ भी शायद हर परिस्थिति से संघर्ष के लिए तैयार रहने का रहा होगा. उसके कहने का मतलब संविधान की रक्षा के लिए वोट जिहाद करने का रहा होगा.

वोट जिहाद पर जब संग्राम नहीं रुका तो खुर्शीद और कांग्रेस दोनों ने विवाद से किनारा कर लिया. लेकिन यहाँ जिहाद का अर्थ समझना जरुरी है क्योंकि बिना उसके विषय की गंभीरता को समझना मुश्किल होगा. राजनीतिक जानकारों के अनुसार मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सामान्यतः मुस्लिम अथवा जीतने वाले भाजपा विरोधी प्रत्याशी के समर्थन में एकतरफा वोट पड़ता है. इसी कारण इन क्षेत्रों में भाजपा के जीतने की सम्भावना कम होती है. मुस्लिम वोट बटने की स्थिति में ही भाजपा जीत पाती है.

बड़ी संख्या में मुसलमान भाजपा को हिन्दुओं की पार्टी मान इसके विरोध में मतदान करने को ही वोट जिहाद मान लेते हैं. इससे ऐसा लगता है की भारत में हिन्दू विरोध ही जिहाद का वास्तविक अर्थ है. जिहाद अरबी भाषा का शब्द है. कुरान में दो प्रकार की जिहाद बताई गई है, जिसमें से एक है अल-असगर, जिसका अर्थ तलवार से जिहाद निकलता है. अल-असगर जिहाद काफिरों और पाखंडियों के खिलाफ जिहाद की बात करता है. काफिर अर्थात जो इस्लाम को नहीं मानते. इस्लाम में मूर्ति पूजा का स्थान नहीं है, इसलिए मूर्ति पूजा को भी पाखंड माना जाता है.

एक शब्द किताली जिहाद भी आता है. इसका अर्थ सैनिक शक्ति के प्रयोग से लिया जाता है. वहीं हदीस में 4 प्रकार के जिहाद का उल्लेख मिलता है, जिसमें से एक है तलवार से जिहाद अर्थात सशस्त्र जिहाद. हदीस में अल्लाह के लिए काम करते हुए मारे जाने को सबसे अच्छी जिहाद बताया गया है. अब मारे जाने का प्रश्न तो तभी उठेगा, जब बात सशस्त्र संघर्ष की होगी.

शरिया की व्याख्या करने वाले कई मुस्लिम धर्मगुरु जिहाद का प्रयोग इस्लाम को न मानने वालों, विशेष रूप से बुतपरस्तों (मूर्ति पूजा करने वालों) के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के रूप में करते हैं.  कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जिहाद का अर्थ इस्लामिक मान्यताओं के लिए संघर्ष करना है, चाहें वो सशस्त्र संघर्ष ही क्यों न हो. ऐसे में वोट जिहाद की खुली अपील को हिन्दुओं के खिलाफ राजनीतिक विरोध के रूप में भी लिया जा सकता है. विशेष बात यह है की सफलता न मिलते दिखने पर यह विरोध सशस्त भी हो सकता है.

राष्ट्रीय परिदृश्य में यदि इसका परिणाम धर्म के आधार पर भारत के एक और विभाजन के रूप में परिलक्षित होता है, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. मुस्लिमों को जनसंख्या के आधार पर और अधिक अधिकारों की मांग तो अभी से होने ही लगी है. कुछ ऐसी ही मांगे भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पूर्व मुस्लिम लीग ने उठाई थीं. जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब भारत विभाजन जैसी कोई मांग राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप में नहीं हो रही थी. लेकिन बाद में परिणाम क्या हुआ? यह हम सभी जानते हैं.

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