नई दिल्ली (मा.स.स.). कोयला मंत्रालय उच्च क्षमता वाले खनन उपकरणों के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने तथा इसके घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कोयला खनन क्षेत्र में स्वदेशी विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने के बारे में निरंतर प्रयास कर रहा है। मंत्रालय के ये प्रयास “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा देने वाले आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्यों के अनुरूप हैं। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए भारी उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालय, एससीसीएल, एनएलसीआईएल, एनटीपीसी, डब्ल्यूबीपीडीसीएल, बीईएमएल, कैटरपिलर, टाटा हिताची, गेनवेल के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक अंतर्विषयक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है।
इसके अलावा उद्योग संघों और अन्य विभिन्न हितधारकों से हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी (एचईएमएम), भूमिगत खनन उपकरण जैसे हाई वॉल (एचडब्ल्यू) माइनर्स, कंटीन्यूअस माइनर्स, हाई कैपेसिटी माइनर्स, हाइड्रोलिक शावेल्स और डंपर्स के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के तरीके सुझाने का अनुरोध किया गया है। इस समिति की अध्यक्षता निदेशक (तकनीकी), सीआईएल कर रहे हैं जो एचईएमएम के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के तरीकों और तंत्र का पता लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं। समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसकी समीक्षा कोयला मंत्रालय के सचिव द्वारा की गई है और मंत्रालय स्तर पर इसके बारे में विचार-विमर्श किया गया है।
वर्तमान में, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) लगभग 3500 करोड़ रुपये मूल्य के इलेक्ट्रिक रोप शोवेल, हाइड्रोलिक शोवेल, डंपर्स, क्रॉलर डोजर्स, ड्रिल, मोटर ग्रेडर्स, फ्रंट एंड लोडर्स व्हील डोजर, कंटीन्यूअस माइनर्स उपकरण जैसे उच्च क्षमता वाले उपकरणों का आयात करता है। सीआईएल आयात के माध्यम से मशीनरी की खरीदारी पर भारी खर्च करता है और 1000 करोड़ रुपये का कस्टम ड्यूटी के रूप में भुगतान करता है। इसलिए, घरेलू उपकरण विनिर्माताओं की क्षमताओं को प्रोत्साहित और विकसित करके अगले पांच से छह वर्षों की अवधि में आयात को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने की योजना बनाई गई है। कुछ उच्च क्षमता वाली मशीनें वर्तमान में घरेलू विनिर्माताओं से खरीदारी करने के परीक्षण के अधीन हैं।
इस संबंध में, सीआईएल ने तैनात किए जाने वाले खनन उपकरणों का व्यापक मानकीकरण किया है ताकि उत्पादकता पर प्रभाव डाले बिना यथा संभव घरेलू निर्मित उपकरणों को कोयला उत्पादन, ढुलाई एवं निगरानी में लगाया जा सके। सीआईएल ने “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से मानकीकरण दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। यह कदम न केवल घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देगा बल्कि आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्यों की सहायता करने के अलावा “मेक इन इंडिया” को भी बढ़ावा देगा। उपकरणों की स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देने से उन आयातित उपकरणों की ब्रेकडाउन अवधि में कमी सुनिश्चित की जा सकेगी जो पुर्जों के उपलब्ध न होने के कारण लंबे समय तक खराब पड़े रहते हैं।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित उपकरण निर्माताओं के साथ सहयोग और संयुक्त उद्यम स्थापित करने को भी प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया पहल के तहत एमएएमसी और जेसप्स जैसी गैर-कार्यात्मक और कम उपयोग की जाने वाली सरकारी बुनियादी ढांचा सुविधाओं का भी पता लगाया जा सकता है। कोयला खनन क्षेत्र में “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा देने से एचईएमएम के विनिर्माण को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिलने की आशा है और यह कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में बढ़ाया गया एक कदम सिद्ध होगा इसके साथ ही यह देश की अर्थव्यवस्था के विकास में भी योगदान देगा।
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