लखनऊ. जूना अखाड़े ने अब आदिवासियों को शीर्ष पदों पर आसीन कराने का निर्णय लिया है। इस बार महाकुंभ-2025 से पहले जूना अखाड़ा वनवासी क्षेत्रों में वंचितों, गरीबों और बेसहारों का धर्मांतरण रोकने के लिए आदिवासी संतों को महामंडलेश्वर बनाएगा। इसके लिए मध्यप्रदेश, छत्तीगढ़, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसे संतों और पीठों को सूचीबद्ध किया जा रहा है। ताकि, महाकुंभ में उनका पट्टाभिषेक कर पदवी दिलाई जा सके।
महाकुंभ-2025 में पहली बार आदिवासी संतों को महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी है। ऐसा सनातन संस्कृति को मजबूत करने और वनांचलों में सक्रिय मिशनरियों की ओर से कराए जा रहे धमांतरण पर अंकुश लगाने के लिए किया जाएगा। माघ मेले में पहुंचे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री और जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरि ने इसकी पुष्टि की।
उन्होंने बताया कि वन क्षेत्रों में जहां आदिवासी , गरीबों की बहुतायत आबादी है और उनकी गरीबी का फायदा उठाकर मिशनरियों के लोग धर्मांतरण करवा रहे हैं, वहां उसी समाज के बीच के संतों को ताकतवर बनाकर खड़ा किया जाएगा। खासतौर से गुजरात, महाराष्ट्र और झारखंड में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की शिकायतें मिल रही हैं। वहां जूना अखाड़ा की ओर से सर्वेक्षण भी कराया जा रहा है। फिलहाल ऐसे प्रदेशों में आदिवासी संतों और मठों की सूची तैयार की जा रही है।
महाकुंभ के दौरान इस संतों का पट्टभिषेक कर उन्हें सनातन धर्म के प्रचार के साथ ही ऐसे गरीबों को समझा बुझाकर पुन: सनातन संस्कृति से जोड़ने की जिम्मेदारी भी सौंपी जाएगी, जिन्हें बहका-फुसलाकर दूसरे धर्मों में शामिल करा दिया गया है।
आदिवासी समाज में शक्तिशाली नेता, अफसर तो हैं ही अन्य उच्च पदों पर भी वह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, लेकिन वहां गरीब वनवासियों का धर्मांतरण तेजी से हो रहा है। ऐसे में आदिवासी संतों को महामंडलेश्वर बनाकर धर्मांतरण का जवाब देने के लिए तैयार किया जाएगा, ताकि वह अपने समाज को लोगों को समाझा-बुझाकर वापस ला सकें। – महंत हरि गिरि, महामंत्री-अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद।
अनुसूचित जाति के संत को भी जूना अखाड़ा बना चुका है महामंडलेश्वर
इससे पहले जातीय भेदभाव मिटाने और सामाजिक समरसता की भावना बढ़ाने के लिए जूना अखाड़ा अनुसूचित जाति के संत कन्हैया प्रभुनंद गिरि को महामंडलेश्वर बना चुके हैं। कन्हैया प्रभुनंद गिरि भी धर्मांतरण रोकने के साथ ही अनुसूचित और वंचित समाज के संतों को एक मंच पर लाने और सनातन संस्कृति से जोड़ने के लिए अभियान चला रहे हैं।
साभार : अमर उजाला
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