रामगढ़ राज्य के राजा विक्रमजीत सिंह ने अपने पिता लक्ष्मण सिंह की मृत्यु के बाद सत्ता प्राप्त की, लेकिन प्रारंभ से ही उनकी रूचि सत्ता चलाने में नहीं थी। उन्होंने अपनी पूरी जिम्मेदारी रानी अवंतीबाई को दे दी। रानी अवंतीबाई जमींदार राव जुझार सिंह की पुत्री थीं। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही विक्रमजीत सिंह से हो गया था। उन्होंने दो पुत्रों अमान सिंह और शेर सिंह को जन्म दिया। अंग्रेजों ने रामगढ़ की सत्ता पर कब्जा करने के लिए एक दिखावटी पालक न्यायालय (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) की कार्रवाई आयोजित की। इस न्यायालय ने राजा विक्रमजीत सिंह को विक्षिप्त घोषित कर दिया। उनके पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह नाबालिग थे। इसको कारण बनाकर रामगढ़ की सत्ता हथियाने के लिए दो सरबराहकार (प्रशासक) शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को नियुक्त कर दिया। रानी ने इन दोनों प्रशासकों को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
रानी अवंतीबाई जानती थीं कि अंग्रेजों का मुकाबला करना किसी एक राज्य के लिए संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने आस-पास के प्रभावी राजाओं और जमींदारों सहित अन्य को एकत्रित करना शुरू कर दिया। एक क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता शंकरशाह ने की। यह सम्मेलन इतनी गोपनियता के साथ किया गया था कि इसकी जानकारी जबलपुर के कमिश्नर मेजर इस्काइन और मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन को नहीं लग सकी। अंग्रेजों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए अनोखी रणनीति बनाई गयी, जिसकी जिम्मेदारी रानी के पास थी। प्रसाद के रूप में एक पुड़िया बनाकर वितरित की गई। इस पुड़िया में दो काली चूड़ियां और एक पत्र था। इस पत्र में लिखा था कि या तो अंग्रेज सरकार का विरोध करने के लिए तैयार हो जाओ या फिर चूड़ियाँ पहन लो और घर पर बैठ जाओ। इस पुड़िया को लेने का अर्थ समर्थन देना माना गया।