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फिल्म कलाकारों की महंगी फीस पर सुभाष घई हुए नाराज

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मुंबई. इस वक्त बॉलीवुड में फिल्म स्टार्स की मोटी फीस और हेवी एनटाउरेज (साथ में लंबी-चौड़ी टीम) रखने को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस बात पर काफी समय से विवाद चल रहा है कि फिल्ममेकर्स से एक्टर्स कई बार फिल्म के बजट के बराबर या उससे ज्यादा फीस मांगते थे। इससे फिल्म के बिजनेस पर असर पड़ता है, जोकि चिंता का विषय है। कई फिल्ममेकर्स ने इस पर नाराजगी भी जताई, और अब सुभाष घई ने भी रिएक्ट किया है। सुभाष घई ने फिल्म स्टार्स को मिलने वाली तगड़ी फीस पर अपनी राय रखी, और इसके लिए कॉर्पोरेट कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया। डायरेक्टर ने तंज कसते हुए कहा कि इसके लिए कॉर्पोरेट कंपनियां ही कसूरवार हैं क्योंकि उन्होंने ही इस चलन की शुरुआत की।

सुभाष घई का स्टार्स की भारी फीस पर फूटा गुस्सा

सुभाष घई ने कोमल नहाटा से बात करते हुए कहा, ‘जब एक फिल्म जो 100 रुपये की बन सकती है, उसको आप 1,000 रुपये में बनाना चाहते हैं, तो याद रखिए कि बचे हुए 900 रुपये में बहुत से लोगों का इंट्रेस्ट है पैसा निकालने का। 100 रुपये में बन सकती थी, लेकिन आपने हजार रुपये में बनाई, तो उसमें हर डिपार्टमेंट अपना कुछ न कुछ 50 रुपये, 10 रुपये रखेगा। अभी जो हमारे सहयोगी थे, वो आज हमारे श्रम विभाजन बन गए हैं। यानी अलग-अलग विभाग बन गए हैं।’

‘किसी का एजेंडा नहीं कि फिल्म छोटे बजट में बने’

सुभाष घई ने आगे कहा, ‘तो सबके अपने-अपने अलग एजेंडा हैं। किसी का एजेंडा नहीं है कि फिल्म उसी बजट में बने। छोटे बजट में बने, बड़ी फिल्म बने। पहले फिल्ममेकर का विजन ऐसा था कि भैया छोटी फिल्म बना रहे हैं। छोटी सी फिल्म का मतलब होता है कि इतने छोटे बजट में होगी।’

‘आज स्टार्स ही 70% हिस्सा ले जाते हैं, हम 10-15% देते थे’

क्या फिल्म निर्माण का जुनून खत्म हो गया है और यह व्यापार बन गया है, तो सुभाष घई बोले, ‘हां बिजनेस ही अब जुनून बन गया है। हमने कभी भी स्टार्स लोगों को 10-15% से ऊपर कीमत नहीं दी थी, 100 रुपये की फिल्म में। लेकिन आज 70% तो स्टार लेकर जा रहा है।’

सुभाष घई ने कॉर्पोरेट्स को ठहराया कसूरवार, कही यह बात

ये चलन कितना गलत है? जवाब में सुभाष घई ने कहा, ‘ये चलन किसने शुरू किया? कॉर्पोरेट्स ने। क्योंकि बिजनेस जबसे कॉर्पोरेट्स के हाथ में आया, उनको शेयर मार्केट में दिखाना है। उनको अपनी बैलेंस शीट दिखानी है। उनको चार पिक्चरें रिलीज करके आंकड़े दिखाने हैं। मैं IPO किसी गलत इरादे से नहीं लाया था। मैं इसलिए लाया था ताकि अनुशासन आए। पर लोगों ने गलत इरादे अपना लिए। मेरी मुक्ता आर्ट्स 2001 में कॉर्पोरेट बनी, तो मैंने उस पैसे से बहुत बड़ा इंस्टिट्यूट बनाया। मैंने 43 फिल्में बनाईं, लेकिन एक भी फिल्म ओवरबजट नहीं है। हर फिल्म में हमने प्रॉफिट कमाया, क्योंकि हमने वो बजट में बनाईं। हर राइटर को बजट का ध्यान रखना चाहिए।’

पहले फिल्म को भगवान मानते थे मेकर्स, आज उल्टा है

सुभाष घई ने आगे कहा, ‘पहले हमारे लिए ऐसा था कि फिल्म भगवान है, हम इंसान हैं। फिल्म चलेगी, तो हम भगवान बन सकते हैं। अभी क्या है कि फिल्म चले ना चले, फिल्म तो किसी की है। स्टूडियोज की है। हमको क्या लेना-देना। जिसने फिल्म को अप्रूव किया, उसके भी पैसे बंट गए आपस में अंदर। प्रोडक्शन और मार्केटिंग के पैसे भी बंट गए आपस में।’

किसी फिल्म को कास्ट के आधार पर नहीं बेचा

सुभाष घई ने फिर कहा कि उन्होंने 18 फिल्में डायरेक्ट कीं, और 49 फिल्में प्रोड्यूस कीं, लेकिन उनमें से उन्होंने एक भी फिल्म कास्ट के आधार पर नहीं बेची। उन्होंने हमेशा ही राइटर्स और कंपोजर्स को तवज्जो दी। लेकिन आजकल फिल्म स्टूडियोज राइटर्स से उनके विजन के बारे में जानने के बजाय स्टार्स के पीछे भागते हैं।

साभार : नवभारत टाइम्स

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