विकसित देशों पर वित्तीय मदद देना कानूनी दायित्व
भारत ने कहा कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के तहत विकसित देशों पर वित्तीय मदद देना कानूनी दायित्व है। अनुकूलन के लिए वित्त को 15 गुना बढ़ाने की जरूरत है, ताकि उन अरबों लोगों की मदद की जा सके जिन्होंने जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान दिया है, लेकिन सबसे ज़्यादा असर झेल रहे हैं। साथ ही भारत ने दोहराया कि पेरिस समझौते की मूल भावना, समान लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियां बरकरार रहनी चाहिए और उसके ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
भारत की जलवायु तकनीक तक सस्सी और समान पहुंच की मांग
इसके साथ ही भारत ने जलवायु तकनीक तक सस्ती और समान पहुंच की मांग की। साथ ही कहा कि पेटेंट और बाजार से जुड़ी बाधाएं हटाई जाएं, जो विकासशील देशों को तकनीक हासिल करने से रोकती हैं। भारत ने विकसित देशों को याद दिलाया कि वे अपने ऐतिहासिक और मौजूदा दायित्वों को निभाएं, यानी जल्द नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करें, नकारात्मक उत्सर्जन तकनीकों में निवेश करें और वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करें।
भारत की चेतावनी
इस दौरान भारत ने यह भी चेतावनी दी कि एकतरफा जलवायु-संबंधी व्यापार नीतियां (जैसे यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म) विकासशील देशों पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं। ऐसे कदम संयुक्त राष्ट्र जलवायु संधि के अनुच्छेद 3.5 का उल्लंघन करते हैं, जो जलवायु कार्रवाई के नाम पर व्यापार प्रतिबंध लगाने से रोकता है।
बोलीविया ने इस मुद्दे को शामिल करने का दिया प्रस्ताव
गौरतलब है कि LMDC समूह की ओर से बोलीविया ने इस मुद्दे को इस साल की जलवायु वार्ताओं के एजेंडे में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, अब तक यह मामला औपचारिक रूप से नहीं उठाया गया है और COP30 की अध्यक्षता इस पर अलग से विचार-विमर्श कर रही है। दूसरी ओर ब्राजील की अध्यक्षता के तहत अभी भी कई संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा जारी है, जिनमें विकसित देशों की वित्तीय जिम्मेदारी, 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य की प्रगति और देशों के जलवायु डेटा की पारदर्शिता शामिल हैं।
साभार : अमर उजाला
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