पटना. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसद और आरजेडी नेता प्रभुनाथ सिंह को हत्या के एक मामले में दोषी करार दिया था। अदालत ने इसी मामले में फैसला देते हुए प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इससे पहले निचली अदालत ने इस मामले में प्रभुनाथ सिंह को बरी कर दिया था। इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने भी इस केस में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया। इसके बाद डबल मर्डर केस में दोषी करार दिया। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रभुनाथ सिंह को दोषी माना और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। प्रभुनाथ सिंह के मामले में तीन जजों की बेंच ने मशरक में राजेंद्र राय और दारोगा राय हत्याकांड में ये फैसला दिया। उम्रकैद की सजा के अलावा अदालत ने पीड़ित परिवारों को 10-10 लाख रुपए देने का भी फैसला दिया है। ये मुआवजा प्रभुनाथ सिंह के साथ राज्य सरकार को भी देना है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह एक ऐसे मामले से निपट रहा है जो ‘हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली का बेहद दर्दनाक प्रकरण’ है। सर्वोच्च न्यायालय देश की सर्वोच्च अपीलीय अदालत है और उसका किसी आरेापी को दोषी ठहराना दुर्लभ मामला है। आम तौर पर उच्चतम न्यायालय किसी मामले में अपील पर व्यक्ति की सजा को बरकरार रखता है या उसे रद्द कर देता है। उच्चतम न्यायालय ने बिहार के महाराजगंज क्षेत्र से कई बार सांसद रह चुके सिंह को दोषी करार देते हुए कहा कि इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि सिंह ने अपने खिलाफ सबूतों को मिटाने के लिए हरसंभव प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन मशीनरी के साथ ही सुनवाई अदालत के पीठासीन अधिकारी को भी उनकी निरंकुशता के एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
ये है पूरा मामला
यह मामला सारण जिले के छपरा में मार्च 1995 में विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान के दिन दो लोगों की हत्या से जुड़ा है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आपराधिक मुकदमे में तीन मुख्य हितधारक – जांच अधिकारी, लोक अभियोजक और न्यायपालिका होते हैं तथा वे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सिंह को दरोगा राय और राजेंद्र राय की हत्या और एक महिला की हत्या के प्रयास के आरोप में दोषी ठहराया। इस पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि 25 मार्च, 1995 को राजेंद्र राय के बयान के आधार पर छपरा में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीठ ने आरोपी-प्रतिवादी संख्या दो (सिंह) को दरोगा राय और राजेंद्र राय की हत्या और एक महिला की हत्या के प्रयास के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 307 के तहत दोषी ठहराया। प्रभुनाथ सिंह जनता दल विधायक अशोक सिंह की उनके आवास पर 1995 में हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अभी हजारीबाग जेल में बंद हैं।
साभार : नवभारत टाइम्स
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं