पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सोमवार को ‘मुख्यमंत्री के जनता दरबार’ में हैं और दूसरी तरफ पटना हाईकोर्ट में उनके ड्रीम प्रोजेक्ट जाति आधारित जन-गणना को लेकर अहम सुनवाई चल रही है। शाम चार बजे राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से भी मुख्यमंत्री की मुलाकात तय है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर उनके दोस्त की लिखी किताब ‘नीतीश कुमार : अंतरंग दोस्तों की नजर से’ का लोकार्पण होगा। अपने आसपास इतना कुछ देख रहे नीतीश कुमार के लिए महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक लगातार नई खबरें दे रहा है।
एक तारीख टलने के बाद उन्होंने पटना में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की बैठक करा ली थी, लेकिन कांग्रेस के खाते में गई अगली बैठक की तीसरी बार तारीख आई है। दो तारीखें, दो जगह टलने के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बेंगलुरू में 17-18 जून को बैठक होने की जानकारी दी। यह जानकारी तब आई, जब जदयू के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता की ओर से खबर आई कि अब संसद के मानसून सत्र के बाद बैठक होगी।
सारी परेशानी की जड़ कहां है, देखें
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देशभर के विपक्षी नेताओं से बात करने और कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी, अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तक से मुलाकात करने के बाद 12 जून को पटना में विपक्षी एकता के लिए बैठक रखी थी। कांग्रेस की ओर से बेहद खराब रिस्पांस के कारण यह बैठक टालनी पड़ी और नीतीश कुमार ने खुद भी इस बात का जिक्र किया कि उन्हें (कांग्रेस को) आगे आना चाहिए। इसके बाद जब कांग्रेस तैयार हुई तो 23 जून को पटना में बैठक हो गई।
बैठक में आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी आए, लेकिन वह मीडिया से मुखातिब होने के पहले लौट गए। वजह कांग्रेस से बैठक के दौरान हुई तनातनी थी। मीडिया के सामने बाकी जो नेता आए भी, उन्होंने पत्रकार वार्ता में भी किसी सवाल का जवाब देने की जगह अपनी बात बोलकर निकल जाना उचित समझा। बात बोलने के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने 11 या 12 जुलाई को शिमला में अगली बैठक होने की जानकारी दी थी। लेकिन, यह जानकारी फेल हो गई। फिर, 13-14 जुलाई को बेंगलुरू में बैठक होने की जानकारी दी गई। अब इस तारीख के टलने की भी जानकारी जदयू के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने सार्वजनिक की है। इसके कुछ घंटे बाद कांग्रेस की ओर से आननफानन में 17-18 जून को बेंगलुरू में ही बैठक होने की जानकारी दी गई।
पहले ही तारीख पर संशय था, अब भी रहेगा
11-12 जुलाई को शिमला की तारीख थी, फिर 13-14 जुलाई को बेंगलुरू की, लेकिन बिहार के लिए यह दोनों ही तारीखें संशय वाली थी। बिहार में विधानमंडल का मानसून सत्र 10 जुलाई से शुरू होने की बात सामने रहते हुए भी जब 11 या 12 जुलाई की बात सामने आई तो ‘अमर उजाला’ ने इसपर प्रेस वार्ता में ही सवाल किया था। कई और सवाल थे, लेकिन किसी का जवाब नहीं मिला। बाद में भी नहीं। 23 जून को 11-12 जुलाई को शिमला के लिए घोषणा हुई और फिर तारीख-जगह बदल गई। अब संसद के मानसून सत्र के बाद की तारीख मिलने की बात त्यागी ने कही। इसके बाद आननफानन में कांग्रेस ने नई तारीख बताई है। कांग्रेस ने इस घोषणा के विपक्षी एकता के समर्थन में लिखा भी है, हालांकि बिहार में विधानमंडल के मानसून सत्र समेत कई कारणों से इसे पक्का मानना शायद जल्दबाजी हो।
महाराष्ट्र की राजनीति का असर तो नहीं यह
राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता चितरंजन गगन के अनुसार बिहार में 23 जून को विपक्षी एकता के लिए हुई बैठक की सफलता से घबराकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र में विपक्ष को कमजोर करने की साजिश रची। गगन के इस दावे को ही आधार मानें तो बिहार की महागठबंधन सरकार को दिखने लगा है कि विपक्षी एकता को बनाए रखना आसान नहीं होगा। तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ पटना में बैठक के दौरान रहीं और साथ निभाने का दावा भी कर गईं, लेकिन पश्चिम बंगाल से तकरार की खबरें आ ही रही हैं। उधर दिल्ली में आप अपना एकाधिकार कांग्रेस के साथ बांटने को तैयार नहीं है। आप ने पटना की बैठक में भी कांग्रेस से तकरार जाहिर कर दिया था। दो प्रमुख नेताओं और राज्यों के बाद महाराष्ट्र का उथलपुथल विपक्षी एकता के लिए अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार के लिए निश्चित रूप से सहज नहीं है।
साभार : अमर उजाला
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