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श्रीलंका ने डिजिटलीकरण के लिए भारत से मांगी सहायता

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नई दिल्ली (मा.स.स.). श्रीलंका सरकार के निमंत्रण पर राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी) के महानिदेशक भरत लाल के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने दो दिवसीय यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से भेंट की। इस दौरान श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त गोपाल बागले, एनसीजीजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ए पी सिंह और शिष्टमंडल के अन्य वरिष्ठ राजनयिक भी उनके साथ उपस्थित थे। बैठक के दौरान, राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका द्वारा हाल में उभरी आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने और देश को उच्च आर्थिक विकास के पथ पर आगे ले जाने की रणनीति के लिए अपना दृष्टिकोण साझा किया।

दोनों पक्षों के बीच हुई चर्चा नीतिगत सुधारों, सुशासन, डिजिटलीकरण, क्षमता वृद्धि एवं प्रशिक्षण, संस्थान निर्माण और आश्वासित लोक सेवा वितरण पर केंद्रित थी। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास को व्यवस्थित करने और उच्च आर्थिक विकास की गति सुनिश्चित करने के तरीके की प्रशंसा की। चर्चा के दौरान, राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रीय सुशासन केंद्र से श्रीलंका में लोक नीति और सुशासन विश्वविद्यालय की स्थापना करने में सहयोग करने का अनुरोध किया। बैठक के दौरान, एनसीजीजी के महानिदेशक ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि किस तरह से नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री की भूमिका संभालने के बाद कई संकटों और नकारात्मक आर्थिक विकास का सामना किया। लेकिन वे अनेक समस्याओं के बीच भी अपने दृष्टिकोण, रणनीति और प्रगतिशील नीतियों के माध्यम से राज्य को उच्च आर्थिक विकास एवं निरंतर समृद्धि के पथ पर आगे लेकर आए। उनके ही प्रयासों से, गुजरात ने पिछले दो दशकों में दोहरे अंकों की आर्थिक वृद्धि को देखा है।

महानिदेशक ने बताया कि वर्ष 2014 के बाद से, प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने जन-केंद्रित नीतियों व सुशासन की एक नई संस्कृति का शुभारंभ किया है और इसके परिणामस्वरूप ही भारत उच्च आर्थिक विकास, आश्वासित लोक सेवा वितरण तथा अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में तेजी से सकारात्मक बदलाव होता देख रहा है। सुशासन हेतु प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण पारदर्शिता, जवाबदेही एवं समावेशिता पर केंद्रित है और इसको सुदृढ़ करने के उद्देश्य से भारत समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए बड़े पैमाने पर डिजिटल प्रौद्योगिकी व योजना, निष्पादन तथा निगरानी तंत्र का उपयोग कर रहा है। राष्ट्रीय सुशासन केंद्र, विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी में प्रधानमंत्री के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन के अनुरूप ही भारत और इसके पड़ोसी देशों के सिविल सेवकों के बीच सहयोग करने तथा सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने चर्चा के दौरान यह अनुरोध किया कि एनसीजीजी तेजी से सामाजिक-आर्थिक विकास एवं उच्च आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए भारत के डिजिटल प्रशासन तथा भागीदारी नीति निर्माण के अनुभव के आधार पर श्रीलंका को आवश्यक सहयोग प्रदान करे। बैठक से इतर भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने श्रीलंका के कई वरिष्ठ सिविल सेवकों से मुलाकात की। इस दौरान यह भी पता चला कि वहां हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक है, किस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबी उन्मूलन, उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं को सुनिश्चित करने, आश्वासित लोक सेवा वितरण, पर्यावरण संरक्षण, समावेशिता और निष्पक्षता, पारदर्शिता व जवाबदेही तथा उच्च आर्थिक विकास के लिए एक नया सुशासन मॉडल दिया है। श्रीलंका अब भारत के नीति-संचालित सुशासन मॉडल और नियोजन एवं निष्पादन में डिजिटल प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग तथा विभिन्न कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं की निगरानी करने में डिजिटल प्रौद्योगिकी के बड़े पैमाने पर उपयोग को सीखने का इच्छुक है।

श्रीलंका के शीर्ष सिविल सेवकों ने राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा आयोजित बैठकों की एक श्रृंखला के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और कुछ समय पहले उनके देश में आए अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान भारत द्वारा श्रीलंका को प्रदान की गई निरंतर सहायता के लिए आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय सुशासन केंद्र के महानिदेशक भरत लाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के बारे में चर्चा की और भारत-श्रीलंका के विशेष संबंधों पर प्रकाश डाला। महानिदेशक ने कुशल, प्रभावी एवं प्रौद्योगिकी संचालित लोक सेवा वितरण सुनिश्चित करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं दृष्टिकोण की महत्वपूर्ण भूमिका के साथ-साथ सुशासन का भी उल्लेख किया। दोनों पक्षों के बीच हुई चर्चा नीतिगत सुधारों, डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग, क्षमता वृद्धि, सुशासन और संस्था निर्माण में श्रीलंका के लिए एनसीजीजी के सहयोग पर केंद्रित रही। मेजबान पक्ष का ऐसा मानना था कि इस पहल से श्रीलंका को अपने संस्थानों को बेहतर बनाने में सहायता मिलेगी और उनका देश उच्च आर्थिक विकास हासिल करने के लिए भारत के सफल सुशासन मॉडल को सीखने तथा उसका उपयोग करने के लिए उत्सुक है।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पारदर्शिता, समावेशिता, निष्पक्षता और जवाबदेही को बढ़ावा देने में डिजिटल प्रौद्योगिकी के सकारात्मक प्रभाव पर जोर दिया। प्रतिनिधिमंडल ने इस तथ्य का जिक्र किया कि भारत में प्रक्रियाओं के स्वचालन ने आम जन एवं कर्मियों के बीच आमने-सामने से संपर्क करने की आवश्यकता को लगभग समाप्त कर दिया है। इसके अलावा भ्रष्ट कार्यप्रणालियों के अवसरों को भी प्रभावी ढंग से कम कर दिया गया है। प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे प्रक्रियाओं का स्वचालन विकास योजनाओं में प्रगति और ईमानदारी स्थापित कर कर सकता है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने स्पष्ट किया कि भारतीय लाभार्थियों के जन धन योजना बैंक खातों में नकद लाभ सीधे हस्तांतरित किया जाता है और इस कार्यक्रम ने बिचौलियों की भूमिका को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है, इसी के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार करने वालों के लिए अवसर समाप्त हो गए हैं। प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली को जन धन-आधार-मोबाइल की ‘जेएएम की त्रिमूर्ति’ द्वारा संचालित किया जाता है। प्रत्येक नागरिक को प्रदान की गई विशिष्ट डिजिटल आईडी और आधार संख्या ने वास्तविक लाभार्थियों की पहचान को सुव्यवस्थित किया है तथा फर्जी लाभार्थियों को व्यवस्था से बाहर कर दिया गया है।

डिजिटलीकरण की व्यवस्था ने भारत में विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों के कार्यान्वयन और लोक सेवाओं के प्रावधान में महत्वपूर्ण अंतर को दूर किया है, जैसा कि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में होने वाली हालिया वृद्धि से स्पष्ट होता है। राष्ट्रीय सुशासन केंद्र के महानिदेशक भरत लाल ने जल जीवन मिशन की सशक्त ई-निगरानी प्रणाली का उदाहरण भी दिया, जिसमें सेंसर-आधारित इंटरनेट ऑफ थिंग्स- आईओटी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। राष्ट्रीय सुशासन केंद्र की स्थापना वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा देश के साथ-साथ अन्य विकासशील देशों के सिविल सेवकों के सुशासन, नीतिगत सुधारों, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक शीर्ष स्तर की स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी। राष्ट्रीय सुशासन केंद्र एक विचारक के रूप में भी कार्य करता है। एनसीजीजी ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी में कई विकासशील देशों के सिविल सेवकों की क्षमता निर्माण का कार्य शुरू किया है।

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