इंफाल. करीब 22 महीने से जातीय हिंसा की चपेट में रहे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में शनिवार को मुक्त आवागमन की शुरुआत में ही कुकी इलाकों में तमाम संगठनों ने वाहनों की आवाजाही रोकने का प्रयास किया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाबलों को लाठीचार्ज करना पड़ा। इसमें कई लोग घायल हो गए। इससे कुकी-बहुल इलाको में नए सिरे से तनाव फैल गया है। दूसरी ओर, लूटे गए सरकारी हथियारों को लौटाने की तारीख खत्म होने के बाद सुरक्षाबलों ने बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया है। राज्यपाल ने इन हथियारों को लौटाने के लिए दो सप्ताह की मोहलत दी थी। वह समय सीमा छह मार्च को ही पूरी हो गई।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते सप्ताह दिल्ली में मणिपुर की स्थिति की समीक्षा के लिए एक उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई थी। उसमें आठ मार्च से तमाम सड़कों को आवाजाही के लिए खोलने का फैसला किया गया था। जातीय हिंसा के दौर में मैतेई और कुकी संगठनों ने अपने-अपने प्रभाव वाले इलाके में सड़कों पर बैरिकेड लगा कर वाहनों और आम लोगों की आवाजाही रोक दी थी। कुकी संगठनों ने पहले ही कह दिया था कि अलग प्रशासन नहीं मिलने की स्थिति में वो अपने इलाके में सड़कों को आवाजाही के लिए नहीं खोलने देंगे। तमाम कुकी संगठन हिंसा शुरू होने के बाद से ही अपने इलाके के लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं। उनकी दलील है कि मैतेई समुदाय के साथ बढ़ी कड़वाहट के बाद अब उनके साथ रहना संभव नहीं होगा।
मणिपुर में बीते महीने राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बावजूद शनिवार को सुबह कुछ प्रमुख सड़कों पर वाहनों की आवाजाही शुरू हुई थी। लेकिन खासकर कुकी-बहुल इलाकों में उनको आम लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। राज्य में ज्यादातर प्रमुख सड़कों पर सरकारी बसों की आवाजाही लगभग ठप थी।
सड़क यातायात शुरू होने के बाद फिर से विवाद
शनिवार को सड़कें खुलने के बाद भारी सुरक्षा के सात सरकारी बसों का संचालन शुरू किया गया। हालांकि उन बसों में यात्री नहीं के बराबर ही थे। इंफाल से कांग्पोक्पी होकर सेनापति जाने वाली सरकारी बस को बीएसएफ के काफिले के साथ रवाना किया गया था। लेकिन कांग्पोक्पी जिले की सीमा पर कुकी महिलाओं के एक गुट ने सड़क जाम कर दिया था। उसे हटाने के लिए बीएसएफ के जवानो को लाठीचार्ज करना पड़ा। उसके बाद दोनों जिलो की सीमा पर भारी तनाव पैदा हो गया। सरकारी अधिकारियों ने बताया कि इंफाल से चूड़ाचांदपुर के बीच हेलीकॉप्टर सेवा भी 12 मार्च से शुरू हो जाएगी।
मणिपुर के एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इंफाल से कांग्पोक्पी होकर सेनापति औऱ इंफाल से विष्णुपुर होकर चूड़ाचांदपुर तक जाने वाली सड़क बसों की आवाजाही के लिए खोल दी गई है। उन दोनों सड़कों पर थोडी-थोडी दूर पर सुरक्षा बलों के जवान तैनात हैं। इसके साथ ही बसों के साथ भी सुरक्षाबलों के वाहन तैनात हैं। इस बीच राज्यपाल अजय कुमार भल्ला की अपील पर दो सप्ताह की समयसीमा के भीतर एक हजार से ज्यादा सरकारी हथियारों को जमा करा दिया गया है। मार्च, 2023 में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद सरकारी शस्त्रागारों और थानों से करीब छह हजार हथियार लूट लिए गए थे। इनको लूटने वालो में मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के उग्रवादी संगठन शामिल थे।
वैसे, सरकारी हथियार लौटाने की अपील कोई पहली बार नहीं की गई है। इससे पहले जून, 2023 में राज्य में जगह-जगह ड्राप बाक्स रखे गए थे। उन पर लिखा था कि कृपया लूटे गए हथियारों को यहां जमा कर दें। ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का भी भरोसा दिया गया था। लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हो सका था।
राज्य में राष्ट्रपति शासन
राज्य में करीब एक महीने से राष्ट्रपति शासन लागू होने के बावजूद सवाल उठ रहा है कि क्या इससे मणिपुर में शांति लौटेगी? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कुकी संगठन अपने रुख पर अड़े हैं। मणिपुर घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की अदालती सलाह के बाद साल 2023 में तीन मई को बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। उसके बाद राज्य के पर्वतीय और मैदानी इलाकों के बीच विभाजन साफ उभर आया। पर्वतीय इलाकों में कुकी-जो और नागा जनजातियां ही रहती हैं। हालात इस कदर बेकाबू हो गए हैं कि अब उनमें से कोई भी एक-दूसरे के इलाके में पांव रखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।
हिंसा के बाद दोनों तबकों के उग्रवादी संगठनों ने बड़े पैमाने पर हथियार लूटे और अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद उठा लिया। यह लोग एक-दूसरे को देखते ही जान से मार देते थे और अब भी तस्वीर में खास सुधार नहीं आया है। हिंसा शुरू होने के बाद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। गैर-सरकारी आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है। हिंसा के दौरान सैकड़ों करोड़ की संपत्ति फूंक दी गई और 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित के दौर पर विभिन्न राहत शिविरों में दिन गुजारने पर मजबूर हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब तक तमाम लूटे हुए हथियार बरामद नहीं हो जाते और दोनों तबकों के बीच बातचीत नहीं शुरू होती, राज्य में शांति औऱ सामान्य स्थिति की बहाली संभव नहीं है। मौजूदा परिस्थिति में तो इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं।
साभार : अमर उजाला
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