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सशक्त रक्षा वित्त प्रणाली शक्तिशाली सेना की मेरुदण्ड है : राजनाथ सिंह

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नई दिल्ली (मा.स.स..). रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक सशक्त रक्षा वित्त प्रणाली को शक्तिशाली सेना की मेरुदण्ड बताते हुए सुरक्षा संबंधी पर आवश्यकताओं पर व्यय की गई धनराशि की उपयोगिता अधिकतम करने के लिए नवीन तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। राजनाथ सिंह  नई दिल्ली में रक्षा वित्त एवं अर्थशास्त्र विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक विधिसम्मत एवं प्रक्रियात्मक रक्षा-वित्त ढांचा एक परिपक्व राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग होता है, जो रक्षा व्यय के विवेकपूर्ण प्रबंधन को सुनिश्चित करता है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि एक ऐसी वित्तीय प्रणालीगत रूपरेखा जिसमें निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार व्यय नियंत्रण, पेशेवरों द्वारा वित्तीय सलाह, ऑडिट, भुगतान प्रमाणीकरण तंत्र आदि शामिल होते हैं, तो उससे यह सुनिश्चित होता है कि रक्षा खर्च आवंटित बजट के भीतर है और व्यय हुई गई की धनराशि पूर्ण सार्थकता प्राप्त हो चुकी है। उन्होंने जोर देकर कहा, यह बिल्कुल सच बात है कि सशस्त्र बलों को रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की एक ठोस संरचना की आवश्यकता होती है, जिसमें अनुसंधान एवं विकास संगठन, उद्योग, सैनिक कल्याण संगठन आदि शामिल होते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें वित्तीय संसाधनों के इष्टतम एवं विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त वित्तीय संरचना के साथ ही एक अच्छी तरह से वित्त पोषित प्रणाली की भी आवश्यकता पड़ती है।

राजनाथ सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि रक्षा व्यय में धन की पूर्ण सार्थकता वाली आर्थिक अवधारणा को लागू करना आसान कार्य नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र में राजस्व का कोई प्रत्यक्ष स्रोत नहीं होता है और आसानी से पहचान में आने योग्य लाभार्थी भी नहीं हैं। ऐसे में खर्च किए गए धन की उपयोगिता को अधिकतम करने के लिए उन्होंने जोर देकर कहा कि रक्षा खरीद प्रक्रिया में खुली निविदा के माध्यम से प्रतिस्पर्धी बोली के नियम का पालन किया जाना चाहिए।

रक्षा मंत्री ने कहा कि पूंजी या राजस्व माध्यम के तहत रक्षा प्लेटफार्मों/उपकरणों की खरीद के मामले में खुली निविदा के स्वर्ण मानक को यथासंभव हद तक अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक ऐसी प्रतिस्पर्धी बोली आधारित अधिग्रहण प्रक्रिया जो सभी के लिए खुली हुई होती है, वह वास्तव में व्यय किए जा रहे उचित धन की पूर्ण सार्थकता का एहसास करने का सबसे अच्छा तरीका है। सिंह ने कहा कि कभी-कभार कुछ ऐसे गिने-चुने मामले होंगे, जब खुली निविदा प्रक्रिया का पालन किया जाना संभव नहीं होगा। ऐसे उदाहरण अपवाद के अंतर्गत आने चाहिए और इनको नियम नहीं बनने देना चाहिए।

राजनाथ सिंह ने निष्पक्ष एवं पारदर्शी प्रणाली के लिए रक्षा उपकरणों व रक्षा प्रणालियों की खरीद के नियमों और प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करते हुए विस्तारपूर्ण ब्लू बुक्स के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार ने पूंजी अधिग्रहण हेतु रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 के रूप में ब्लू बुक तैयार की है; जो राजस्व उपलब्धता के लिए रक्षा खरीद नियमावली तथा रक्षा सेवाओं हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व है। रक्षा मंत्री ने कहा, निर्दिष्ट नियमावली यह सुनिश्चित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं कि रक्षा खरीद की प्रक्रिया नियमबद्ध है और यह वित्तीय औचित्य के सिद्धांतों का पूर्णतः पालन करती है। उन्होंने यह भी कहा, चूंकि ये नियमावली काफी महत्वपूर्ण हैं, तो ऐसे में उन्हें सभी हितधारकों के परामर्श से रक्षा वित्त एवं अधिग्रहण विशेषज्ञों द्वारा सावधानी से तैयार करने की आवश्यकता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि यह एक सतत अभ्यास होना चाहिए, ताकि इन दस्तावेजों को गतिशील रूप से अद्यतित किया जा सके, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर नए नियमों तथा प्रक्रियाओं को शामिल किया जा सकता है।

रक्षा मंत्री ने दैनिक वित्तीय मामलों में सेवा कर्मियों को विशेषज्ञ वित्तीय सलाह की भूमिका निभाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि सक्षम वित्तीय प्राधिकरण (सीएफए) को वित्तीय सलाह देने के लिए एकीकृत वित्तीय सलाहकारों (आईएफए) की प्रणाली बनाई गई है ताकि सार्वजनिक धन को बर्बाद होने से बचाया जा सके। सिंह ने कहा कि इस प्रणाली में एकीकृत वित्तीय सलाहकार और सक्षम वित्तीय प्राधिकरण जनता के धन का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने की दिशा में एक टीम के रूप में कार्य करते हैं। राजनाथ सिंह ने आंतरिक तथा बाहरी लेखापरीक्षा की एक विश्वसनीय एवं आसान व्यवस्था की वकालत की, जो वित्तीय विवेक और औचित्य के सिद्धांतों का पालन करने के बाद भी यदि कोई अपव्यय, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी घटना होती है, तो उससे निपट सके। उन्होंने कहा कि लेखा परीक्षक की भूमिका प्रहरी या रक्षक की होती है।

उन्होंने लेखांकन, बिल पास करने और भुगतान, वेतन एवं पेंशन वितरण आदि की एक ठोस प्रणाली की आवश्यकता पर भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि यह सशस्त्र बलों के कर्मियों को उनके मुख्य कर्तव्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए तमाम बातों से मुक्त रखता है। उन्होंने कहा कि रक्षा वित्त के कार्यों को मुख्य रक्षा संगठनों से विमुख करने के अनेक लाभ हैं। सिंह ने कहा कि इन उपायों से गड़बड़ी होने, भ्रष्टाचार तथा अपव्यय की संभावना कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सकारात्मक आम विचार तब उत्पन्न होता है, जब यह न्यायोचित विश्वास होता है कि जनता का पैसा बेहतर एवं विवेकपूर्ण तरीके से खर्च किया जा रहा है। रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा व्यय की प्रणाली में अधिक सार्वजनिक भरोसे और आत्मविश्वास के साथ ही रक्षा प्रणाली समग्र रूप से लाभान्वित होती है, क्योंकि विधायिका द्वारा अधिक से अधिक धन उपलब्धता की संभावना बढ़ जाती है।

सिंह ने जोर देकर कहा, मूलभूत विचार यह है कि सेना, नौसेना, वायु सेना व रक्षा अनुसंधान संगठनों आदि जैसे रक्षा प्रतिष्ठानों को एक विशेष एजेंसी की आवश्यकता होती है, जो उनके रक्षा वित्त एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए समर्पित हो। उन्होंने कहा कि भारत में यह कार्य वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं) के नेतृत्व में रक्षा लेखा विभाग द्वारा दक्षतापूर्वक किया जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों के समक्ष साझा सुरक्षा का विचार भी रखा। उन्होंने कहा कि एक परिवार के रूप में पूरे विश्व की सामूहिक सुरक्षा की भावना के साथ हम सभी संपूर्ण मानव जाति के हित में एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में भागीदार हैं। सिंह ने कहा कि हमें रक्षा वित्त एवं अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आपके अनुभवों से बहुत कुछ सीखना है और हम आपके साथ अपनी सीखी हुई चीजों को साझा करने के लिए तैयार हैं।

रक्षा मंत्री ने कहा कि समाज के विकास की पूरी क्षमता का एहसास तभी हो सकता है, जब वह बाह्य एवं आंतरिक खतरों से पूर्णतः सुरक्षित हो। उन्होंने बाहरी आक्रमणों और आंतरिक व्यवधानों से लोगों की सुरक्षा को देश का प्रमुख कर्तव्य बताया। उन्होंने कहा कि सुरक्षा वह मूल सिद्धान्त है, जिस पर किसी भी समाज की समृद्धि, कला व संस्कृति फलती-फूलती तथा समृद्ध होती है। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे, रक्षा सचिव (पूर्व सैनिक कल्याण) विजॉय कुमार सिंह, रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के अध्यक्ष डॉ. समीर वी कामत, वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं) रसिका चौबे, अपर सीजीडीए प्रवीण कुमार और एसजी दस्तीदार व देश-विदेश के कई अन्य प्रतिनिधि उपस्थित थे।

रक्षा मंत्रालय (वित्त) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में अमरीका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, बांग्लादेश तथा केन्या सहित भारत और अन्य देशों के प्रतिष्ठित नीति निर्माता, शिक्षाविद तथा सरकारी अधिकारी भाग लें रहे हैं। यह उन्हें वैश्विक स्तर पर उभरती सुरक्षा चुनौतियों और नीतियों के संदर्भ में रक्षा वित्त तथा अर्थ नीतियों पर अपनी अंतर्दृष्टि एवं अनुभव साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। इस सम्मेलन का उद्देश्य प्रतिभागियों के बीच संवाद तथा सहयोग को बढ़ावा देना और इष्टतम वित्तीय संसाधनों एवं रक्षा बजट के प्रभावी उपयोग के साथ-साथ देश की रक्षा तैयारी में योगदान देना है।

इसका लक्ष्य विभिन्न देशों की सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों, अनुभवों और विशेषज्ञता का प्रसार करना तथा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ भारतीय संदर्भ में प्रक्रियाओं को एक मार्ग पर लेकर आना है। यह सम्मेलन रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण व आत्मनिर्भरता पर भारत सरकार के वर्तमान में जारी प्रयासों का सहयोग करने और परिवर्तनकारी सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए रक्षा वित्त तथा इसके लिए अर्थ नीतियों के क्षेत्र में विदेशी सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों एवं वैश्विक नेताओं के साथ सहयोग की भी आशा करता है। सम्मेलन के दौरान चर्चा के विषयों में रक्षा वित्त और अर्थशास्त्र के क्षेत्रों में वर्तमान चुनौतियां तथा अवसर शामिल किये जा रहे हैं। इनमें संसाधनों का कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से आवंटन व उपयोग करना तथा लागत के प्रति जागरूक तरीके से संचालन एवं क्रियान्वयन का प्रबंधन करना शामिल है। सम्मेलन के प्रतिभागी दुनिया भर में रक्षा अधिग्रहण से संबंधित वित्त और अर्थनीति के विभिन्न मॉडलों तथा कार्य प्रणालियों के साथ-साथ रक्षा अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में नवीनतम विकास व नवाचारों पर भी विचार-विमर्श करेंगे।

इसके अलावा, चर्चा के दौरान कई प्रमुख विषयों पर विचार-विमर्श संपन्न होंगे। इस दौरान, रक्षा क्षेत्र में मानव संसाधनों के प्रबंधन पर सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को साझा किया जाएगा, जिसमें रक्षा कार्मिकों के वेतन, पेंशन एवं कल्याण से संबंधित मुद्दे और रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर निगरानी तंत्र की भूमिका तथा कार्यविधियां शामिल हैं।

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