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पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने सेना से जुड़े दो बिलों पर हस्ताक्षर न करने का किया दावा

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इलामाबाद. पाकिस्तान में प्रेसिडेंट आरिफ अल्वी के एक ट्वीट से अजीब तरह का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है और यह इस मुल्क के इतिहास में पहली बार हुआ। अल्वी ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा- मैंने ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट और आर्मी अमेंडमेंट बिल को मंजूरी नहीं दी है। मेरे स्टाफ ने मेरे साथ धोखाधड़ी की है।

इमरान खान के करीबी दोस्त अल्वी की पोस्ट से सियाली बवाल मच गया। इससे कई सियासी और संवैधानिक सवाल भी पैदा हो गए। मसलन, अब इन दो बिलों का क्या होगा? क्या प्रेसिडेंट हाउस का स्टाफ उनका हुक्म टाल सकता है? क्या प्रेसिडेंट झूठ बोल रहे हैं? इस हरकत का फायदा किसको होगा? और सबसे बड़ी बात- क्या अल्वी ने यह चाल इमरान को बचाने के लिए चली है?

सबसे पहले मामले पर नजर

  • पाकिस्तान की संसद के निचले सदन (नेशनल असेंबली) ने इस महीने की शुरुआत में ये दोनों बिल पास किए। बाद में इन्हें ऊपरी सदन यानी सीनेट के पास भेजा गया। वहां कुछ सवाल उठे और बदलाव को कहा गया। स्पीकर ने दोनों बिल स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिए। बदलाव के बाद बिल पास हो गए।
  • 8 अगस्त को इन्हें प्रेसिडेंट आरिफ अल्वी के पास भेजा गया। कानूनी तौर पर प्रेसिडेंट किसी भी बिल को 10 दिन ही अपने पास रख सकता है। इन दौरान या तो वो बिल संसद को वापस भेज सकता है या फिर उन्हें मंजूर कर सकता है। वो कुछ बदलाव के सुझाव भी दे सकता है।
  • अब यहां दो बातें समझनी होंगी। पहली- संसद चाहे तो प्रेसिडेंट के सुझाव मंजूर कर सकती है और चाहे तो ठुकरा भी सकती है। दूसरी- अगर प्रेसिडेंट 10 दिन में बिल वापस नहीं करता तो यह ऑटोमैटिकली लॉ यानी कानून बन जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि यह कानून अब रद्द हो जाएगा। इसकी कोई कानूनी या संवैधानिक हैसियत नहीं होगी।
  • केयरटेकर सरकार की लॉ मिनिस्ट्री इस विवाद पर बयान जारी किया। कहा- प्रेसिडेंट ने 19 अगस्त को दोनों बिल मंजूर किए। दिनभर मीडिया पर चर्चा हुई। 28 घंटे बाद वो दस्तखत करने से इनकार कर रहे हैं। इन हालात के लिए वो खुद जिम्मेदार हैं।

तो दिक्कत कहां हुई

  • प्रेसिडेंट अल्वी के पास बिल 8 अगस्त को गया। उन्हें 18 अगस्त तक या तो बिल को मंजूरी देनी थी, या फिर इसे वापस करना था। उन्होंने दोनों ही काम नहीं किए और अब ठीकरा स्टाफ के सिर फोड़ दिया।
  • अल्वी कह रहे हैं कि उन्होंने स्टाफ से बिल वापस करने को कहा था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दूसरी बात, वो ये शक भी जता रहे हैं कि गुरुवार को जो मीडिया में इन बिलों को मंजूरी दिए जाने की खबर आई थी, वो फर्जी थी। हो सकता है उनके जाली सिग्नेचर किए गए हों। उन्होंने इसके लिए ईश्वर से माफी भी मांगी है।
  • सवाल ये उठ रहा है कि क्या वाकई प्रेसिडेंट ने स्टाफ से बिल वापस भेजने को कहा था? अगर ये सही है तो फिर स्टाफ ने उनकी बात क्यों नहीं मानी। एक बात ये भी है कि क्या स्टाफ ने प्रेसिडेंट के जाली दस्तखत किए? क्योंकि, शनिवार को पूरे मीडिया में यह खबर चली कि प्रेसिडेंट अल्वी ने दोनों बिल मंजूर कर लिए हैं। इसके लिए कई लोगों ने उनका शुक्रिया भी अदा किया।
  • मजे की बात ये है कि पिछले साल अप्रैल में शाहबाज शरीफ के सत्ता में आने के बाद अल्वी ने 13 बिल पहले भी लौटाए थे। वो तय वक्त पर संसद के पास पहुंचे तो इस बार ऐसा क्यों नहीं हुआ? ये स्टाफ की साजिश है या फिर प्रेसिडेंट अल्वी खुद झूठ बोल रहे हैं?

ये संवैधानिक संकट क्यों है

  • इसे आसान भाषा में समझें। अल्वी ने न तो बिल मंजूरी किए और न ही ये संसद को वापस भेजे। लिहाजा, कानूनी तौर पर तो ये दोनों ही बिल कानून बन चुके हैं। दूसरी बात- इस बात संसद भंग है और मुल्क में केयरटेकर गवर्नमेंट है। मान लीजिए प्रेसिडेंट बिल वापस भी भेजते हैं तो किसके पास भेजेंगे?
  • इमरान खान जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने पार्लियामेंट का जॉइंट सेशन बुलाकर दर्जनों बिल पास करा लिए थे। अब तो ये भी नहीं हो सकता, क्योंकि संसद के नाम पर सिर्फ सीनेट (जैसे हमारे यहां राज्यसभा) है, नेशनल असेंबली (जैसे हमारे यहां लोकसभा) तो भंग है। सीनेट के पास किसी बिल को पास करने या रिजेक्ट करने का अख्तियार यानी ताकत ही नहीं है।
  • बहस इस बात पर है और यही संवैधानिक संकट है कि अब इन दो बिल का क्या होगा? इसमें दो बातें मुमकिन हैं। पहली- कानूनी और संवैधानिक तौर पर प्रेसिडेंट इन्हें 10 दिन में वापस कर सकता था। वजह चाहे जो रही हो, वो ऐसा करने में नाकार रहा। लिहाजा, बिल अब कानून बन चुके हैं। पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और पूर्व फाइनेंस मिनिस्टर इन्हीं दो कानूनों की वजह से शुक्रवार-शनिवार को गिरफ्तार किए गए।
  • दूसरी बात- सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस (इमरान समर्थक उमर अता बंदियाल) इस मामले पर सुओ मोटो (स्वत: संज्ञान) लेकर सुनवाई शुरू करें और जब तक फैसला नहीं आता, तब तक बिल होल्ड किए जाएं।

फायदा किसको होगा

  • सीधे तौर पर इमरान खान और उनके सहयोगियों को। खान को सरकारी खजाने (तोशाखाना) के तोहफे बेचने के मामले में तीन साल की सजा हो चुकी है और वो जेल में हैं। अगर ये दो बिल कानून माने जाते हैं तो खान सीक्रेट लेटर (साइफर गेट स्कैंडल) चुराने और आर्मी एक्ट (9 मई हिंसा) मामले में भी फंसेंगे और उन्हें सजा भी यकीनी तौर पर होगी, क्योंकि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं।
  • अल्वी और चीफ जस्टिस बंदियाल दोनों ही अगले महीने रिटायर हो रहे हैं। सवाल ये है कि इसके बाद नया प्रेसिडेंट और नया चीफ जस्टिस भी खान की मदद करेगा? ये गलती केयरटेकर, नई सरकार या फौज बिल्कुल नहीं करेगी।
  • सीनियर जर्नलिस्टस और मशहूर एंकर जावेद अहमद चौधरी के मुताबिक- प्रेसिडेंट झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने बिल पर सिग्नेचर किए थे। अब किसी के इशारे पर वो ठीकरा स्टाफ पर फोड़कर खुद को और इमरान को बचाना चाहते हैं। हमारा मुल्क दुनिया में मजाक बन चुका है। ये नई मिसाल है। हो सकता है वो इमरान के अहसान का बदला चुका रहे हों और चंद दिनों में इस्तीफा देकर सुकून से घर चले जाएं।

साभार : दैनिक भास्कर

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