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दूसरे की विचारधारा के प्रति असहिष्णुता की चिंताजनक प्रवृत्ति को खत्म करें : जगदीप धनखड़

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तिरुवनंतपुरम (मा.स.स.). उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान और अशांति को राजनीतिक रणनीति के हथियार के रूप में इस्‍तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और उन्होंने विधायकों तथा पीठासीन अधिकारियों से तत्काल इस दुर्भावना को दूर करने की अपील की। उपराष्ट्रपति ने आज तिरुवनंतपुरम में केरल विधानसभा के भवन – नियमसभा – के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से शुद्धता, शिष्टता और मर्यादा के उच्च मानकों द्वारा अपने आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

धनखड़ ने विधायकों से संविधान सभा से प्रेरणा ग्रहण करने की अपील की जिसने कई जटिल मुद्दों को बिना किसी व्यवधान के निपटाया और रेखांकित किया कि विधायिका का प्रभावकारी कामकाज लोकतांत्रित मूल्यों के फलने-फूलने एवं संरक्षित करने तथा कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने की सबसे सुरक्षित गारंटी है। उन्होंने ‘‘दूसरे की विचारधारा के प्रति असहिष्णुता की चिंताजनक प्रवृत्ति को खत्म करने” की भी अपील की। इस बात पर जोर देते हुए कि किसी लोकतंत्र में सभी मुद्दों का मूल्यांकन पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के साथ नहीं किया जा सकता, उपराष्ट्रपति ने सभी से राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठाने की अपील की। उन्होंने यह प्रश्न भी उठाया कि ‘‘वह हाजिरजवाबी, हास्य और कटाक्ष जो पहले संसद और विधानमंडलों की विख्यात हस्तियों के बीच आदान प्रदान की विशिष्टता रही”, अब सार्वजनिक बहस से क्यों लुप्त हो रही है और उन्होंने विधायकों से इसे पुनर्जीवित करने की भी अपील की।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सदन के परिसर के भीतर बोलने की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार प्रदान करता है, बहरहाल, उन्होंने सावधान किया कि इस स्वतंत्रता का उपयोग एक जीवंत लोकतांत्रिक परंपरा को बनाये रखने के लिए एक स्वस्थ बहस के लिए किया जाना चाहिए न कि विघटनकारी उद्देश्यों के लिए। उन्होंने रेखांकित किया कि संसद और विधानमंडल असत्यापित सूचनाओं के तेज और निरंतर पतनशील अभिव्यक्तियों के मंच नहीं हैं। इस बात पर जोर देते हुए कि किसी भी लोकतंत्र में, संसदीय संप्रभुता अनुल्लंघनीय है, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘लोकतंत्र का सार वैध मंच-संसद और विधानसभाओं के माध्यम से अभिव्यक्त लोगों के कानून की व्याप्ति में निहित है।”

केरल के लोगों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके विधायी भवन की रजत जयंती के इस ऐतिहासिक क्षण पर बधाई देते हुए उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि ऐसे भवन ईंट और गारे से निर्मित्त भवन से बहुत परे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘केरल विधानसभा भवन लोगों की इच्छा, लोकतंत्र की भावना और संविधान के सार का प्रतिनिधित्व करता है। ‘‘ यह बताते हुए कि यह राज्य अपने अग्रगामी दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है, उपराष्ट्रपति ने अन्य विधानमंडलों द्वारा ध्यान देने योग्य कई प्रगतिशील विधानों को अधिनियमित करने की प्रशंसा की। उन्होंने विधायकों से कहा, ‘‘ वर्तमान विधायकों के रूप में, आपको एक प्रकाशमान धरोहर विरासत में मिली है। इसे और अधिक उज्ज्वल बनाना आपका कर्तव्य है।”

देश में सबसे अधिक इंटरनेट पैठ बनाने और उभरती प्रौद्योगिकीयों की क्षमता का दोहन करने वाले राज्य की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने आशा व्‍यक्‍त की कि राज्य का गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन अपनी प्रगतिशील कार्य संस्कृति के साथ मिलकर शासन के नए रास्तों की पटकथा लिखने में सहायता करेगा। उन्होंने केरल के प्रवासी निवासियों की भी सराहना की जिन्होंने अपने प्रेषित धन (रेमिटेंस) के माध्यम से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में असीम योगदान दिया है। इस अवसर पर केरल के राज्यपाल, आरिफ मोहम्मद खान, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, केरल विधानसभा के अध्यक्ष ए. एन. शमसीर, केरल विधानसभा के उपाध्यक्ष चित्तयम गोपाकुमार, केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन, केरल सरकार के मंत्री के राधाकृष्णन तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद से धनखड़ की केरल की यह पहली यात्रा है। राज्य को प्राचीन प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्ध संस्कृति की भूमि बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह ‘ईश्वर के अपने देश’ में आकर प्रसन्न हैं। अपने संबोधन के दौरान, उन्होंने राज्य की प्रतिष्ठित हस्तियों का अभिवादन किया और उनके योगदानों की सराहना की। केरल में 21 मई, 2023 को उनके आगमन पर डॉ. सुदेश धनखड़ के साथ-साथ उपराष्ट्रपति ने विख्यात पद्मनाभस्वामी मंदिर का दौरा किया तथा सभी के कल्याण और प्रसन्नता के लिए प्रार्थना की।

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