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औरंगजेब पर हिंसक विवाद के बाद कोल्हापुर में 19 जून तक धारा 144 लागू

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कोल्हापुर. मध्यकालीन इतिहास के जिस एक चरित्र पर सबसे ज्यादा विवाद रहा है, वह नाम है औरंगजेब। आलमगीर की उपाधि रखने वाला वही औरंगजेब, जिसकी धर्मांधता बहस का मुद्दा बनती रही है। हिंदूवादी संगठनों से लेकर सियासी दल औरंगजेब के इतिहास से जुड़े अध्याय पर तलवारें भांजते रहे हैं। हिंदुस्तान पर राज करने वाले इस छठे मुगल शासक और मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की अदावत इतिहास में दर्ज है। उन्हीं शिवाजी की धरती कोल्हापुर में औरंगजेब पर एक नया विवाद शुरू हो गया है। आइए समझते हैं इतिहास की अदावत और वर्तमान घटना को।

औरंगजेब पर कोल्हापुर-अहमदनगर में क्यों विवाद
इससे पहले कि औरंगजेब और शिवाजी की प्रतिद्वंद्विता पर जाएं, कोल्हापुर में हुआ क्या यह समझते हैं। कोल्हापुर से पहले अहमदनगर में औरंगजेब के एक पोस्टर से विवाद की चिंगारी भड़की। यहां के फकीरवाड़ा इलाके में रविवार को सुबह एक जुलूस निकाला गया। जुलूस में म्यूजिक और डांस के बीच चार लोगों ने औरंगजेब के पोस्टर लहरा दिए। चारों के खिलाफ केस दर्ज हुआ। इसके बाद महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि इस देश और राज्य में शिवाजी महाराज औरसंभाजी महाराज पूजनीय हैं।

औरंगजेब का पोस्टर कोई लहराता है तो बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि कोल्हापुर से एक नई घटना सामने आ गई। यहां औरंगजेब और टीपू सुलतान का स्टेटस कुछ लोगों ने अपने मोबाइल पर लगाया था। इसके विरोध में कई हिंदू संगठनों ने कोल्हापुर बंद की अपील की थी। इसी दौरान पुलिस से झड़प हुई और उसके बाद 19 जून तक वहां धारा 144 लगा दी गई है।

ऐसे शुरू हुई शिवाजी-औरंगजेब की अदावत
अब आते हैं शिवाजी और औरंगजेब की अदावत पर। जब शहजादा औरंगजेब दक्कन का सूबेदार था, तभी उसकी शिवाजी से लड़ाई शुरू हुई। 1656 में बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मौत के बाद औरंगजेब ने वहां आक्रमण कर दिया। शिवाजी ने इस दौरान औरंगजेब पर हमला बोल दिया। अहमदनगर और रेसिन के दुर्ग पर भी शिवाजी ने धावा बोला। इस वजह से औरंगजेब और शिवाजी के बीच तनाव बढ़ गया। हलांकि शाहजहां के कहने पर औरंगजेब ने बीजापुर से संधि की।

शाहजहां के बीमार होने के बाद औरंगजेब ने उत्तर भारत का रुख किया। वहीं शाहजहां को कैद कर जल्द ही वह दिल्ली का बादशाह बन गया। दक्षिण भारत में भी धीरे-धीरे मराठा साम्राज्य शिवाजी के नेतृत्व में मजबूत होता गया। उत्तर भारत से ध्यान हटने के बाद औरंगजेब ने एक बार फिर दक्षिण का रुख किया। वह शिवाजी की ताकत से वाकिफ था। उसने शिवाजी पर अंकुश के लिए अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार बनाया। डेढ़ लाख की फौज के साथ शाइस्ता खां पूना पहुंच गया। तीन साल तक वह मावल में लूटपाट करता रहा। इसी दौरान शिवाजी ने एक दिन शाइस्ता खां पर हमला किया, जिसमें उसकी चार अंगुलियां कट गईं। उसके बेटे अबुल फतह को भी मराठों ने मार दिया।

औरंगजेब को चुनौती देते हुए शिवाजी ने खड़ा किया हिंदू साम्राज्य
जब शिवाजी से औरंगजेब का नुकसान बढ़ता गया तो उसने संधि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 की इस संधि के मुताबिक शिवाजी को 23 दुर्ग मुगलों के हवाले करने थे। शिवाजी को इसके बाद आगरा के किले में बुलाया गया। जब वहां उचित सम्मान नहीं मिला तो शिवाजी ने भरे दरबार में नाराजगी जाहिर की। औरंगजेब ने इसके बाद शिवाजी को नजरबंद करा दिया। औरंगजेब का इरादा शिवाजी की हत्या का था। लेकिन उससे पहले ही शिवाजी ने चकमा दे दिया।

17 अगस्त 1666 को शिवाजी और संभाजी किले से भागने में कामयाब रहे। 1668 में शिवाजी और मुगलों के बीच दूसरी बार संधि हुई। इसके बाद 1670 में शिवाजी ने मुगल सेना को सूरत के पास फिर शिकस्त दी। पुरंदर की संधि में जिन राज्यों को शिवाजी ने मुगलों को दिया था, 1674 आते-आते उन इलाकों पर दोबारा शिवाजी का अधिकार हो गया। काशी के ब्राह्मणों ने रायगढ़ के किले में सितंबर 1674 में शिवाजी का राज्याभिषेक कराया। इसके बाद उन्होंने हिंदवी स्वराज का ऐलान किया। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिंदू साम्राज्य था।

औरंगजेब की 1707 में मौत, कब्र है संभाजीनगर में
3 अप्रैल 1680 को निधन से पहले तक शिवाजी का साम्राज्य मुंबई के दक्षिण में कोंकण से लेकर पश्चिम में बेलगांव, धारवाड़ और मैसूर तक फैला हुआ था। औरंगजेब को चुनौती देने के साथ शिवाजी अपने राज्य का विस्तार करते रहे। इतिहास में कहा जाता है कि शिवाजी की वजह से ही औरंगजेब की दक्षिण नीति फेल हो गई। यह भी दिलचस्प है कि शिवाजी की धरती पर ही औरंगजेब की मौत हुई। अहमदनगर में तीन मार्च 1707 को औरंगजेब ने आखिरी सांसें लीं। उसकी कब्र औरंगाबाद (अब संभाजीनगर) के खुल्दाबाद में स्थित है।

1689 में शिवाजी के बेटे संभाजी से जंग
औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र संभाजी महाराज की बर्बर हत्या कराई थी। महाराष्ट्र में संभाजी को धर्मवीर की उपाधि दी जाती है। खुद औरंगजेब भी संभाजी से काफी प्रभावित था। उसने संभाजी से कहा था- मेरे चार बेटों में से अगर एक भी तुम्हारे जैसा होता तो कब का पूरा हिंदुस्तान मुगल सल्तनत का हिस्सा बन जाता। संभाजी को मौत से पहले भीषण यातनाएं दी गई थीं। 1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद औरंगजेब की नजर दक्कन (दक्षिण) पर फिर पड़ी।

हालांकि संभाजी महाराज की शूरवीरता की वजह से उसके लिए मुश्किल बनी रही। 1689 की शुरुआत में छत्रपति संभाजी राजे के बहनोई गानोजी शिर्के और औरंगजेब के सरदार मुकर्रब खान ने संगमेश्वर पर हमला किया। मराठों और मुगल सेना के बीच भीषण संघर्ष हुआ। मराठों की शक्ति कम हो गई थी। मराठा योद्धा अचानक हुए दुश्मन के हमले का जवाब नहीं दे सके। इसके बाद मुगल सेना संभाजी महाराज को जीवित पकड़ने में कामयाब रही।

40 दिन तक संभाजी को दी गईं यातनाएं
संभाजी राजे और कवि कलश को औरंगजेब के पास पेश करने से पहले बहादुरगढ़ ले जाया गया था। औरंगजेब ने शर्त रखी थी कि संभाजी राजे धर्म परिवर्तन कर लें तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। हालांकि संभाजी राजे ने ये शर्त मानने से साफ इनकार कर दिया। 40 दिन तक औरंगजेब के अंतहीन अत्याचारों के बाद 11 मार्च 1689 को फाल्गुन अमावस्या के दिन संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई। असहनीय यातना सहते हुए भी संभाजी राजे ने स्वराज और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। इसलिए अखंड भारतवर्ष ने उन्हें धर्मवीर की उपाधि से विभूषित किया।

साभार : नवभारत टाइम्स

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